Monday, December 5, 2016

फिरकाबंदी का खात्मा और हक कि दावत



शुरु करता हु मैं अल्लाह के नाम से जो बड़ा महेरबान और बहुत रहेम वाला है.

 सब तारीफे अल्लाह के लिए है जो तमाम जहाँ का पालने वाला है, हम उसी की तारीफ़ करते है और उसी का शुक्र अदा करते है. अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक (पूजनीय) नहीं है, वह अकेला है और उसका कोई साझी और शरीक (भागीदार) नहीं है. मुहम्मद (स.अ.व.) अल्लाह के बंदे (गुलाम) और रसूल (पयगम्बर / संदेशवाहक) है.

 अल्लाह कि बेशुमार रहेमते और सलामती नाझिल जो उनके रसूल (स.अ.व.) पर और उनकी आल-औलाद और उनके साथियो पर.

 अम्मा बाद,

 फिरकाबंदी क्या है?

 फिरकाबंदी का मतलब है कि किसीकी सोच, राय, बात या आमाल कि बुनियाद पर सबसे अलग होकर अपना एक गिरोह या जमात बना लेना.

 आजके इस माहोल में अगर आप नजर करे तो आपको मुस्लिम उम्मह में बहोत सारे फिरके मिलेंगे. कोई अपने आपको सुन्नी कहता है, कोई हनफ़ी, हम्बली, मालिकी, शाफई, देवबंदी, बरेलवी, कादरियाह, चिश्तियाह, अहमदिया, जाफरियाह, वगैरह वगैरह. हर एक फिरका एक दूसरे से मुहं मोड़कर अपना अपना मझहब बना लिया है. जबके उनके मझहब के सिद्धांत और आमाल देखे तो वह एक दूसरे से बिलकुल अलग है फिरभी अपने आपको मुसलमान कहते है. हर एक ने अपने अपने इमाम, किताबें, मस्जिदे, मदरसे, और मुसल्ली (नमाजी) बाँट लिए है और यहाँ तक कि अपनी पहेचान के लिए पहनावेमें कुछ ना कुछ खास बातें रख ली है जिसकी बुनियाद पर वह फिरका लोगो से अलग पहेचान लिया जाए. बड़े हैरत कि बात यह है कि हर एक फिरका अपने आपको सिराते मुस्तकीम (सीधे रास्ते) पर जनता है और कहेता है. उनके पास जो इस्लामी सोच है उससे वह खुश है. इस बात को अल्लाहताला ने कुरआन में कुछ इस तरह बयान किया है, “जिन्हों ने अपने दीन के टुकडे टुकडे कर दिए और गिरोह (फिरको) में बंट गए, हर गिरोह (फिरका) उसीसे खुश है जो उसके पास है” (सुरह अर् रूम:३२) हर फिरका दूसरे को गुमराह मानता है और अपने आपको सीधे रह पर जानता है. येही बात यहूद और नसारा में भी थी जिसे अल्लाहताला ने कुरआन में बताया है, “यहूद ने कहा ‘नसारा किसी बुनियाद पर नहीं’ और नसारा ने कहा ‘यहूद किसी बुनियाद पर नहीं’ हालाकि वे दोनों अल्लाहताला कि किताब पढते है” (सुरह बकरह:११३)

 फिरकाबंदी कि वजह (सबब)
 मुस्लिम उम्महमें जो फिरकाबंदी पैदा हुई उसकी तहकिक अगर कि जाए तो यह बुनियादी वजह मिलती है कि हमने अल्लाहताला के कुरआन को और रसूल (स.अ.व.) के फरमान को छोड दिया है. इन दोनों चीजों को छोडकर हमने अपने अपने इमाम, आलिम, मौलवी कि बातों को अपना लिया है और उनके कॉल और हुक्मो को उस हद तक का दरज्जा दिया है कि उनकी तमाम बातो को सच समझ लिया है. आम मुसलमान ने कभी यह कोशिश नहीं कि के इन बातो को कुरआन और हदीस के मुकाबले में रखे या उसकी तहेकिक करे. अगर दूसरे अल्फाज में कहा जाए तो हमने अपने आलिमो को ‘रब’ बना लिया है. अल्लाहताला कुरआन में फरमाते है, “उन्होंने अपने आलिमो और दरवेशों (संतो) को ‘रब’ बना लिया है.(सुरह तौबा:३१) यह आयत का साफ़ मतलब होता है कि किसी शख्श को इज्जत में वोह मक़ाम देना के उसके हर कौल (शब्द) को आखरी कौल माना जाए तो वह उसकी इबादत करने के बराबर हुआ. क्योकि आखरी कौल तो सिर्फ अल्लाहताला का कौल होता है और उसी की इबादत की जाती है. जब अल्लाहताला कोई फैसला कर देता है और उसे अपने रसूल (स.अ.व.) के जरिये उम्मत में उतरता है तो उसमे तबदील (बदलने) करने और शरई हद कायम करने का किसी और को हक नहीं.

 अरब के अइम्मा इमाम अबू हनीफा (र.अ.), इमाम शाफई (र.अ.), इमाम मालिक (र.अ.) और इमाम इब्ने हम्बल (र.अ.) जिनकी ओर हम अपनी निस्बत करते है उन्होंने क्या इस्लाम को छोडकर अपना अलग मजहब बनाया था या बनाने का हुक्म दिया था? हरगिज नहीं बल्कि सभी इमामों का येही कौल था कि अगर हमारी बात कुरआन या हदीस कि बात से टकराये तो हमारी बातो को छोडकर कुरआन या हदीस कि बातों को सीने से लगा लेना. फिर हम उम्मत को क्या हुआ है कि हमें कुरआन कि आयत या सहीह हदीस मिलने के बावजूद सिर्फ अपनी जिद कि वजह से अपने इमामों और आलिमो कि बातों को अपनाये हुए है.

 फिरकाबंदी के नुक्शानात
 फिरकाबंदी का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि हम अल्लाहताला और उसके रसूल(स.अ.व.) से दूर हो जायेंगे. इस बात को कुरआन में कुछ इस तरह बयान किया है.

 “जिन लोगो ने अपने दीन के टुकडे टुकडे कर दिए और गिरोह (फिरकों) में बंट गए, (अय नबी) तुमको उनसे कुछ काम नहीं. उनका मामला बस अल्लाह के हवाले है. वही उन्हें बतलायेगा कि वे क्या कुछ करते थे.” (सुरह अल अनाम:१५९)

 तो कुरआन कि इस आयत से मालुम हुआ कि अगर हम फिरके बनायेंगे तो अल्लाहताला और उसके रसूल(स.अ.व.) से दूर होकर गुमराह हो जायेंगे और गुमराही का मतलब है हंमेशा के लिए जहन्नम.

 फिरकाबंदी कि वजह से हमारे अंदर हक(सच) को तलाश करने का जझबा(तमन्ना) खतम हो जाता है और हम अपने इमाम, पीर या आलिम की बातो को बिना कुरआन और हदीस कि दलाइल के बगैर हक(सच) मानने लगते है. फिर ना हम कुरआन समजने के लिए तैयार होते है और नाही हदीस समजकर उस पर अमल करेने के लिए.

 लोग फिरकाबंदी के घरों में अपने आप को बन्द करके अपने इमाम, पीर साहब या आलिम के कौल कि कुंडी लगा लेते है, फिर चाहे आप बाहर से उन्हें कितनी भी कुरआन कि आयत सुनाये या फरमाने रसूल(स.अ.व.) सुनाओ मगर वह उसको मानने के लिए तैयार नहीं होता और अपने बडो के कौल कि कुंडी खोलकर फिरकाबंदी के घर से बाहर निकलना ही नहीं चाहता.

 फिरकाबंदी की वजह से हम मुसलमान लोग आपस में एक दूसरे से नफ़रत करने लगते है और फिर शैतान अपनी चल चलकर हमें आपस में लड़ाता है. हालाकि हम मुसलमान एक उम्मत है और अल्लाहताला नेे हमें एक दीन “इस्लाम” दिया है जो बिलकुल सीधासादा दीन है जिसे कुरआन में कुछ इस तरह बयान किया है,

 “तुम इब्राहीम के दीन को अपनाओ जो हर एक से अलग होकर एक (अल्लाहताला) के हो गए थे और मुशरिको में से ना थे” (सुरह आले इमरान:९५) और दूसरी जगह अल्लाहताला फरमाते है,

 “इब्राहीम न यहूदी थे न नसरानी बल्के सीदे सादे मुसलमान थे और मुशरिक भी न थे.”(सुरह आले इमरान:६७)

 फिरकाबंदी का हल (उपाय)
 फिरकाबंदी का हल बताते हुए अल्लाहताला कुरआन में फरमाते है,

 “अय एहले किताब, आओ एक ऐसी बात कि ओर जो तुममे और हम में एक सामान है. वह यह कि हम अल्लाहताला के सिवा किसी और कि इबादत ना करे और ना उसके साथ किसी चीज को शरीक करे और ना हममें से कोई एक दूसरे को अल्लाहताला के सिवा किसी को रब बनाये. फिर यदि वोह इससे मुंह मोड ले तो कह दो गवाह रहो हम तो ‘मुस्लिम’ है.” (सुरह आले इमरान:६४)

 दूसरी जगह अल्लाहताला फरमाते है, “सब मिलकर अल्लाहताला कि रस्सी को मजबूती से पकडो और आपसमे फूंट पैदा न करो” (सुरह आले इमरान:१०३)

 अल्लाहताला के रसूल(स.अ.व.) ने भी हमें एक रहने को कहा है और उनकी बुनियादी बात भी बतलाते हुए फरमाया है कि, “मै तुम्हारे दरमियान दो चीजे छोड़े जा रहा हू अगर तुम उनपर अमल करोगे तो कभी गुमराह नहीं होंगे, वह दो चीजे है अल्लाह कि किताब (कुरआन) और मेरी सुन्नत यानी मेरा तरीका (हदीस)” (मोत्ता मालिक:२२५१, रिवायात अबू हुरैरह(रदी.)

 अल्लाहताला ने हमें सिर्फ दो लोगो के हुक्म मानने के लिए कहा है, जिसे कुरआन में बताया है कि,

 “अल्लाहताला कि इताअत करो और उसके रसूल (स.अ.व.) कि इताअत करो ताकि तुम पर रहम किया जाए.”(सुरह आले इमरान:१३२)

 दूसरी जगह फरमाते है, “अय ईमानवालो, अल्लाहताला का हुक्म मानो और रसूल(स.अ.व.) का हुक्म मानो और तुममे जो अधिकारी (सत्ताधीश) है उनकी बात मानो. फिर अगर तुममे किसी बात पर इख्तिलाफ (मतभेद) हो जाए तो उसे अल्लाहताला और रसूल(स.अ.व.) कि ओर लौटा दो अगर तुम अल्लाहताला और आखिरत पर ईमान (यकीन) रखते हो. यह तरीका सर्वश्रेष्ठ है और इसका अंजाम बहेतर है (सुरह निशा:५९)

 कुरआन कि यह आयत हमारे बिच के गिरोहबंदी के हल का तरीका बयान करती है.

 फिरकाबंदी का अंजाम
 अल्लाहताला के कुरआन कि यह आयतें और रसूल(स.अ.व.) के फरमान के बावजूद अगर हम फिरकाबंदी पर कायम रहे तो अल्लाहताला कुरआन में लोगो को डराते हुए कहते है,

 “उस वक़्त को ध्यान(याद) करो जब कि वे लोगो (पीर/इमाम/आलिमो) के पीछे चले थे अपने मुरीदो से अलग हो जायेंगे और अजाब उनके सामने होगा और उनके आपस के सारे नाते टूट जायेंगे. (सुरह अल बकरह:१६६)

 याद रखो ! क़यामत के दीन कोई किसी के काम न आएगा. सिर्फ जिद, अहम् और माहौल कि वजह से हक बात का इनकार ना करो और तुम खूब जानते हो कि हक बात सिर्फ कुरान और हदीस है.

 आज यह माहोल है कि अगर मैं कोई फिरके में सिर्फ इसलिए हू कि मैंने अपने बाप-दादा को येही करते और कहते देखा है तो जान लो अल्लाहताला कुरआन में फरमाते है,

 “जब उनसे कहा जाता है कि अल्लाहताला ने जो कुछ उतारा (कुरआन और हदीस) है उसके मुताबिक चलो, तो कहेतें है, नहीं! हमतो उसी के मुताबिक चलेंगे जिस पर हमने बाप-दादा को पाया है, क्या इस हाल में भी के उनके बाप-दादा ना-समज और गुमराह हो? (सुरह अल बकरह:१७०)

 और दूसरी जगह अल्लाहताला फरमाते है, “जब उनसे कहा जाता है कि उस चीज कि तरफ आओ जो अल्लाहताला ने उतारी है (कुरआन) और रसूल (स.अ.व.) कि ओर (हदीस) तो वह कहेते है ‘हमारे लिए वोही काफी है जिस पर हमने अपने बाप दादा को पाया है. क्या यदि उनके बाप दादा कुछ भी ना जानते हो और ना रास्ते पर हो तब भी?” (सुरह अल माइदा:१०४)

 हमारी दावत
 उम्मत के हर फिरके को हमारी दावत है कि हम अपने बनाये हुए मजहब को छोडकर अल्लाहताला के उस दीन कि ओर लौट आए जिस दीन के सिद्धांत और नियम खालिस(सम्पूर्ण) है. जिसे कुरआन और हदीस कि शक्ल में महेफुझ किया गया है और हर फिरका उसे हक जनता है. इसलिए हम अपने आमाल सिर्फ और सिर्फ कुरआन और सुन्नह के मुताबिक बनाये. हर एक फिरका अपना अपना लेबल छोडकर अपने आपको सिर्फ “मुसलमान” कहे और हर एक फिरका अपना अपना बनाया हुआ मजहब छोडकर अल्लाहताला कॉ दीन जो कि इस्लाम है उसे अपनाए.

 दिन में पांच बार हम अल्लाहताला से हर नमाज में दुआ करते है कि “हमें सीधे रास्ते पर चला” (सुरह फातिहा:५) तो जब अल्लाहताला ने सीधा रास्ता दिखाया है उससे हटकर हम क्यों फिरकाबंदी करके अपने आपको गुमराह कर रहे है और सीधे रास्ते से दूर हो रहे है.

 अल्लाहताला कुरआन में फरमाते है, “उस चीज (कुरआन) को मजबूती से पकडे रहो जो तुम्हारी ओर वही कि जाती है, बेशक तुम सीधे रास्ते पर हो.” (सुरह अज जुखरुफ़:४३)

 और दूसरी जगह, “बेशक तुम रसूलों में से हो, निहायत सीधे रास्ते पर.” (सुरह यासीन:३-४)

 जब अल्लाहताला ने अपने रसूल (स.अ.व.) को सीधे रास्ते पर होने कि गवाही दी है तो हमें चाहिए कि हम भी अपने आपको रसूल(स.अ.व.) के हुक्मों और आमालो के मुताबिक चलकर सीधे रास्ते पर रहने कि कोशिश करनी चाहिए. हमारे लिए यही बेहतर है, दुनिया और आखिरत में कामयाब होने के लिए. कुरआन को समजो जिसे अल्लाहताला ने आसान किया हुआ है. “हमने कुरआन को समजने के लिए आसान किया है, तो है कोई समजनेवाला?” (सुरह अल कमर:१७,२२,३२,४०) और अल्लाहताला के रसूल(स.अ.व.) के फरमानो को मानो जो हदीस कि शक्ल में है. इसे बुखारी शरीफ, मुस्लिम शरीफ, अबू दावूद शरीफ, तिरमिझी शरीफ, इब्ने माझा शरीफ कहेते है. अल्लाहताला ने हमें दो हाथ दिए और रसूल(स.अ.व.) ने उसी दो हाथों में दो चीजे (कुरआन और हदीस) दी है. अल्लाहताला ने न हमें तीसरा हाथ दिया और नाही रसूल(स.अ.व.) ने हमें तीसरी चीज दी है.

 लौट आओ कुरआन और हदीस कि ओर अगर कामयाब होना चाहते हो.
 तोड़ दो वोह तमाम बंदिशे जो हमें एक दूसरे से अलग करती है.
 छोड़ दीजिए वोह तमाम बाते और अमल जो अल्लाहताला के कुरआन और रसूल(स.अ.व.) के फरमान के खिलाफ हो.
 छोड़ दीजिए अपने-अपने आलिमों और मौलवियों कि किताबें और पकड़ लीजिए अल्लाहताला कि किताब (कुरआन)
 हम इसी बुनियाद पर एक उम्माह बन सकते है और हमारे बिच मोहब्बत कायम हो सकती है.
 अल्लाहताला से दुआ करते है कि हमें इस उम्मत के बिच से फिरकाबंदी खत्म करने कि समज दे और दिने ‘इस्लाम’ पर हमें कायम रखे…. आमीन.

Tuesday, November 29, 2016

जिस ने ज़हर पी कर खुद कुशी की

जिस ने ज़हर पी कर खुद कुशी की, उस के हाथ में ज़हर होगा और वह जहन्नम में उसे हमेशा पीता रहेगा ।
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(बुखारी 5778)


(सब से अफ़्ज़ल (बेहतर) सदका यह है के) तू उस वक़्त सदका करे, जब तू सेहतमंद हो और तुझे माल की ख्वाहिश हो ।
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(बुखारी 2748)



जिस शख्स ने अपने भाई को किसी ऐसे गुनाह पर शर्मिन्दा किया जिस से वह तौबा कर चूका था, तो वह उस वक़्त तक न मरेगा जब तक के वह उस गुनाह को न कर लेगा।
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(तिर्मिज़ी 2505)



तुम में बेहतरीन शख्स वह है जिस से लोग भलाई की उम्मीद करे और उस के शर (तक्लीफ़) से महफूज़ हो ।
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(तिर्मिज़ी 2263)



दीने इस्लाम बहुत आसान मज़हब है ।
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(बुखारी 39)



तुम्हारी वह लड़की जो (तलाक़ या शौहर के मारने की वजह से) लोट कर तुम्हारे ही पास आ गई हो और उस के लिये तुम्हारे सिवा कोई कमाने वाला न हो (तो ऐसी लड़की पर जो भी खर्च किया जायेगा वह बेहतरीन सदका है )। 
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(इब्ने माज़ा 3667)



जो शख्स दुनिया में अपनी ख्वाहिशो को पूरा करता है, वह आख़िरत में अपनी ख्वाहिशात के पूरा करने से महरूम होता है ।
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(शोअबुल ईमान 9722)



जो शख्स झूटी कसम खा कर किसी का माल ले लेगा,वह अल्लाह के सामने कोढ़ी (जिसे कोढ़ होआ हो) हो कर पेश होगा ।
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(आबू दाऊद 3244)



तुम नमाज़ पढ़ो, क्यों की नमाज़ में शिफ़ा है । 
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(इब्ने माज़ा 3458)



 वह मुसलमान जिस की (लोगों को) माफ करने की आदत थी, वह जन्नत में जाने का हक्दार है ।
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(कन्जुल उम्माल 7015)



जब तुम वज़न करो तो झुकता वज़न करो । 
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(तिर्मिज़ी 1305)



ऐ ईमान वालो! अल्लाह से सच्ची पक्की तौबा कर लो, उम्मीद है के तुम्हारा रब तुम्हारे गुनहो को माफ़ कर देगा और जन्नत में दाखिल कर देगा ।
-कुर्आन
(सुर-ऐ-तहरीम 8)



इंसान के कदम क़यामत के दिन अल्लाह के सामने से उस वक़्त तक नहीं हटेंगे जब तक के उस से उस के माल के बारे में सवाल न कर लिया जाए के उस को कहा से कमाया और कहा खर्च किया ।
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(तिर्मिज़ी 2416)



जो शख्स हराम तरीके (सूद (बियाज), रिशवत वगैरा) से माल जमा कर के सदका करे, उस को उस सदके का कोई सवाब नहीं मिलेगा, बल्कि उस हराम कमाई का वबाल उस पर है ।
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(मुस्तदरक 1440)



अल्लाह तआला की नाराज़गी माँ बाप की नाराज़गी में है।
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(शोअबुल ईमान 7830)


हज़रत मुहम्मद ﷺ इस बात को पसंद नहीं फरमाते थे के असहाब (साथियो) की मजलिस में खुश्बू लगाये बगैर तशरीफ़ ले जाये ।
(सुबलुल्हुदा वर्रशाद 7/337)



अल्लाह तआला गली गलोच और बे हयाई की बात करने वालो और बाज़ार में चीख व पुकार करने वालो को पसंद नहीं फरमाता ।
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(अल अदबुल मुफरद 310)



हज़रत मुहम्मद ﷺ  ने(एक मर्तबा एक सहाबी को) अपनी ज़बाने मुबारक पकड़ कर फ़रमाया के सब से ज़ियादा खतरा इस से है ।
(तिर्मिज़ी 2410)



जब लोग बुराई को देखे और उस को न रोकें, तो करीब है के अल्लाह तआला उन सब पर अज़ाब नाज़िल फरमा दे ।
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(इब्ने माज़ा 4005)



जब तू यह देखे के अल्लाह तआला किसी गुनहगार को उस के गुनाहो के बा वजूद उस की चाहत पर दुनिया की चीज़े दे रहा है, तो यह अल्लाह तआला की तरफ से ढील है ।
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(मुसनदे अहमद 17311)



हज़रत मुहम्मद ﷺ और आप के घर वाले बहुत सी रात भूके रहते थे उन के पास रात का खाना तक नहीं होता था ।
(तिर्मिज़ी 2360)



लोगो में अल्लाह तआला के सब से जियादा करीब वह शख्स है, जो पहले सलाम करे ।
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(अबू दाऊद 5117)



वादा भी एक तरह का क़र्ज़ है ।
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(तबरानी औसात 3513)



आदमी जब हमेशा सच ही बोलता है और सच्चाई ही को इख़्तियार कर लेता है तो अल्लाह के नज़्दीक सिद्दीक़ (सच्चा) लिख दिया जाता है ।
-हज़रत मुहम्मद ﷺ
(मुस्लिम 6805)
____________

Thursday, November 24, 2016

ईद मिलादुननबी की हकीकत



ईद मिलादुननबी क्यों मनाई जाती है और इसकी हकीकत क्या है?

मिलाद से मुराद है पैदाइश का दिन और ईद मिलादुननबी का मतलब है नबी-ए-करीम ﷺ की पैदाइश के दिन ईद मानना.
ईद मिलादुननबी मनाने वालों का कहना है के 12 रबीउल अव्वल को मुहम्मद ﷺ की विलादत हुई थी और उनकी विलादत का दिन ख़ुशी का दिन है इसलिए हर साल इस दिन को बड़े जोशो-खरोश से मनाते हैं , नए कपड़े पहने जाते हैं, घरों में मिठाइयां और पकवान बनाये जाते हैं, और एक जुलूस भी निकाला जाता है जिसमे माइक और लाउडस्पीकर पर नारे लगाते हुए, शोर शराबों के बीच ये खुशियां मनाते हैं.
ये कहाँ तक सही है और क़ुरान और हदीस में इसके बारे में क्या हुक्म है,




ईद मिलादुन नबी को मनाने का सुबूत न तो किसी हदीस में मिलता है और न ही क़ुरआन की किसी आयत में ईद मिलादुन नबी का ज़िक्र है, तो फिर ये वुजूद में कहाँ से और कैसे आया?

तारिख की किताबों के हवाले से पता ये चला के इराक़ के शहर मौसूल का इलाक़ा इरबिल का बादशाह "मलिक मुज़फ्फर अबु-सईद" ने नबी-ए-करीम की वफ़ात के 600 साल बाद सबसे पहले इस्लाम में इस नयी खुराफात को जनम दिया और रबीउल अव्वल के महीने में उसके हुक्म से एक महफ़िल सजाई गयी जिसमें दस्तरख्वान सजाया गया और सूफियों  को बुलाया गया फिर ढोल-तमाशे और नाचना-गाना हुआ  जिसे ईद मिलादुन नबी का नाम दिया गया.
(अल-बिदायह वाल निहाया, जिल्द १३,सफहा 160, इबने कसीर)
इस बादशाह के बारे में मोवर्रिख (इतिहासकार) ने लिखा है के इसे दीन की समझ नहीं थी और ये फ़ुज़ूल खर्च इंसान था
(अनवारे सातिया, सफहा 267)

उसके पहले तक क़ुरान हदीस से साबित सिर्फ दो ईद ही थी मगर कुछ गुमराह लोगों की वजह से ये तीसरी ईद का आग़ाज़ हुआ जिसकी कोई दलील मौजूद नहीं है.

मुहम्मद स० अलैह० फरमाते हैं "" दीन के अंदर नयी नयी चीज़ें दाखिल करने से बाज़ रहो, बिला शुबहा हर नयी चीज़ बिदअत है और हर बिदअत गुमराही है और हर गुमराही जहन्नम में ले जाने वाली है."
(अबु'दाऊद किताब अल सुंनह 7064)

इस तीसरी ईद को मनाने की शरई हकीकत पे ग़ौर करें तो
ईद मिलादुन नबी को कभी भी रसूलल्लाह के ज़माने हयात में नहीं मनाया गया और न ही कभी आप ﷺ ने इसे मनाने का हुक्म दिया.
इस तीसरी ईद को सहाबए कराम में से किसी ने नहीं मनाया और न ही कभी इस ईद के वजूद की तस्दीक की.
ताबईन और तब ताबईन के दौर में भी कभी कहीं इस ईद का ज़िक्र नहीं मिलता  और न ही उस ज़माने में भी किसी ने इस ईद को मनाया था.

इन तमाम सुबूतों से यही साबित होता है के इस्लाम में दो ईदों (ईद उल-फ़ित्र और ईद उल-अज़हा ) के अलावा कोई तीसरी ईद नहीं है, ये खुराफाती दिमाग़ की उपज है जो के सरासर बिदअत है.

रसूलल्लाह स० अलैह० ने फ़रमाया "सबसे बेहतरीन अमर (अमल करने वाली) अल्लाह की किताब है और सबसे बेहतर तरीका मुहम्मद स० अलैह० का तरीका है, और सबसे बदतरीन काम दीन में नयी नयी बातें पैदा करना है, और हर नयी बात गुमराही है "
(इबने माजा जिल्द 1 हदीस 45)

१२ रबीउल अव्वल का दिन हज़रत मुहम्मद ﷺ के दौरे हयात में 63 दफा आया था, खुलफ़ा-ए-राशेदीन में
हज़रते अबु बकर रज़ि० की खिलाफत में 2 दफा
हज़रते उमर रज़ि० की खिलाफत में 10 दफा
हज़रते उस्मान रज़ि० की खिलाफत में 12 दफा  और
हज़रते अली रज़ि० की खिलाफत में  4 दफा
ये दिन आया मगर फिर भी किसी के भी ईद मिलादुन नबी मनाने का सुबूत नहीं है. जब उनके जैसी शख्सीयतों ने जिनके ईमान हमसे कही ज़्यादा कामिल थे और जो किताबुल्लाह और सुन्नते रसूल पे आज के मुस्लमान से कही ज़्यादा ....बल्कि सबसे ज़्यादा अमल करने वालों में से हैं,  कभी इस दिन को नहीं मनाया तो फिर तुम कौन होते हो दीन में नयी चीज़ ईजाद करने वाले?

आइये इस बिदअत को ज़ोर-शोर से अंजाम देने वाले लोगों के पेश किये गए कुछ सुबूतों पे ग़ौर करते हैं :

"कह दीजिये, अल्लाह के इस फज़ल और रहमत पर लोगों को खुश होना चाहिए"
(सूरह 10 यूनुस, आयत 58 )

उन लोगों ने इस आयत में रहमत से मुराद विलादते नबी तस्लीम कर लिया, जबकि रहमत से मुराद अल्लाह की किताब क़ुरआन से है.
खुद अहमद राजा खान की तर्जुमा करदह कंज़ुल ईमान तफ़्सीर में भी इसको क़ुरआन से मुराद किया गया है जिसे फैजाने क़ुरआन में इस तरह बयां किया गया है:-
तफ़्सीर में लिखा है  " हज़रते इबने अब्बास व हसन व क़तादह ने कहा के अल्लाह के फज़ल से इस्लाम और उसकी रहमत से क़ुरआन मुराद है, एक क़ौल ये है के फ़ज़्लुल्लाह से क़ुरान और रहमत से अहादीस मुराद हैं" (फैजाने क़ुरआन , साफ 311)

इसी तरह की और भी आयतें इनकी तरफ से दलील के तौर पे पेश की जाती हैं
"और उन्हें अल्लाह के दिन याद दिलाओ" (सूरह इब्राहिम , आयत 5)
"बेशक अल्लाह का बड़ा एहसान है मुसलमानो पर, के उन में उन्ही में से एक रसूल भेजा"
(सूरह आले इमरान, आयत १६४)

  हदीस भी सुबूत के तौर पे बयां की जाती है
जब अल्लाह के रसूल ﷺ से पीर के रोज़े के मुताल्लिक़ पूछा जाता है तो वो फरमाते हैं के इस दिन यानि पीर को ही मेरी विलादत भी हुई और पीर को ही नुज़ूले क़ुरआन की इब्तेदा हुई.

ऐसी और भी न जाने कई दलीलें वो पेश करते हैं मगर कहीं भी विलादते नबी की बात  नहीं मिलती, न तो क़ुरआन की दलील से ही ये वाज़े होता है और न ही हदीस की बात से ऐसा कुछ लगता है, फिर लोगों ने अपने मतलब के हिसाब से कहाँ से मानी निकालना शुरू कर दिए?

जब भी क़ुरान की आयत रसूलल्लाह ﷺ पर नाज़िल होती तो आप सहाबए कराम को तफ़्सीर के साथ समझाते और  उसपे अमल करने को कहते थे...... तो क्या आप ﷺ ने इस तीसरी ईद को अपनी आवाम से छुपा लिया था या फिर आप ﷺ को क़ुरआन के उन आयात के मतलब नहीं समझ आये थे (नौजुबिल्लाह) जिसे आज कुछ लोगों ने क़ुरान से इस ईद का मतलब निकाल लिया??
चले अगर उस वक्त किसी वजह से ये बात रसूलल्लाह ﷺ नहीं भी बता पाए तो फिर आपके सहाबा को भी ये बात पता न चली? अरे ये तो वो लोग थे के जिन्हें अगर छोटी से छोटी बात भी पता चलती तो उस पर अमल करना शुरू कर देते थे फिर क्या ये इतनी बड़ी बात को छोड़ देते, वो भी जो खुद रसूलुल्लाह ﷺ से जुडी हो??

अरे जाहिलों, अक़्ल के घोड़े दौड़ाओ और खुद ही इन बातों पे ग़ौर करो के जिस फेल से हमारे नबी का वास्ता नहीं, सहाबए किराम का वास्ता नहीं, ताबेईन का वास्ता नहीं उसे तुम दीन कह रहे हो, यक़ीनन तुमसे बड़ा गुमराह कोई नहीं.

अल्लाह फरमाता है "और हमने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मुकम्मल कर दिया"
(सुरह 5 मैदा, आयात 3)
फिर तुम्हे क्या ज़रूरत आन पड़ी के तुम इस दीन में बिगड़ पैदा करने लगे??

अल्लाह से दुआ है के इन भटके हुए लोगों को रास्ता दिखाए और हम सबको क़ुरान-ओ-सुनात पे अमल करने की तौफ़ीक़ अत करे (आमीन) 

Share

Thursday, October 27, 2016

तलाक की हकीकत


यूं तो तलाक़ कोई अच्छी चीज़ नहीं है और सभी लोग इसको ना पसंद करते हैं इस्लाम में भी यह एक बुरी बात समझी जाती है लेकिन इसका मतलब यह हरगिज़ नहीं कि तलाक़ का हक ही इंसानों से छीन लिया जाए,

✳पति पत्नी में अगर किसी तरह भी निबाह नहीं हो पा रहा है तो अपनी ज़िदगी जहन्नम बनाने से बहतर है कि वो अलग हो कर अपनी ज़िन्दगी का सफ़र अपनी मर्ज़ी से पूरा करें जो कि इंसान होने के नाते उनका हक है, इसी लिए दुनियां भर के कानून में तलाक़ की गुंजाइश मौजूद है.और इसी लिए पैगम्बरों के दीन (धर्म) में भी तलाक़ की गुंजाइश हमेशा से रही है,..

✳दीने इब्राहीम की रिवायात के मुताबिक अरब जाहिलियत के दौर में भी तलाक़ से अनजान नहीं थे, उनका इतिहास बताता है कि तलाक़ का कानून उनके यहाँ भी लगभग वही था जो अब इस्लाम में है लेकिन कुछ बिदअतें उन्होंने इसमें भी दाखिल कर दी थी.

🔅किसी जोड़े में तलाक की नौबत आने से पहले हर किसी की यह कोशिश होनी चाहिए कि जो रिश्ते की डोर एक बार बन्ध गई है उसे मुमकिन हद तक टूटने से बचाया जाए,

🔅जब किसी पति-पत्नी का झगड़ा बढ़ता दिखाई दे तो अल्लाह ने कुरआन में उनके करीबी रिश्तेदारों और उनका भला चाहने वालों को यह हिदायत दी है कि वो आगे बढ़ें और मामले को सुधारने की कोशिश करें इसका तरीका कुरआन ने यह बतलाया है कि – “एक फैसला करने वाला शोहर के खानदान में से मुकर्रर करें और एक फैसला करने वाला बीवी के खानदान में से चुने और वो दोनों जज मिल कर उनमे सुलह कराने की कोशिश करें, इससे उम्मीद है कि जिस झगड़े को पति पत्नी नहीं सुलझा सके वो खानदान के बुज़ुर्ग और दूसरे हमदर्द लोगों के बीच में आने से सुलझ जाए”..

कुरआन ने इसे कुछ यूं बयान किया है – 
“और अगर तुम्हे शोहर बीवी में फूट पड़ जाने का अंदेशा हो तो एक हकम (जज) मर्द के लोगों में से और एक औरत के लोगों में से मुक़र्रर कर दो, अगर शोहर बीवी दोनों सुलह चाहेंगे तो अल्लाह उनके बीच सुलह करा देगा, बेशक अल्लाह सब कुछ जानने वाला और सब की खबर रखने वाला है” – (सूरेह निसा-35)

🔅इसके बावजूद भी अगर शोहर और बीवी दोनों या दोनों में से किसी एक ने तलाक का फैसला कर ही लिया है तो शोहर बीवी के खास दिनों (Menstruation) के आने का इन्तिज़ार करे, और खास दिनों के गुज़र जाने के बाद जब बीवी पाक़ हो जाए तो बिना हम बिस्तर हुए कम से कम दो जिम्मेदार लोगों को गवाह बना कर उनके सामने बीवी को एक तलाक दे, यानि शोहर बीवी से सिर्फ इतना कहे कि 
”मैं तुम्हे तलाक देता हूँ”.
❗ तलाक हर हाल में एक ही दी जाएगी दो या तीन या सौ नहीं, जो लोग जिहालत की हदें पार करते हुए दो तीन या हज़ार तलाक बोल देते हैं यह इस्लाम के बिल्कुल खिलाफ अमल है और बहुत बड़ा गुनाह है
              अल्लाह के रसूल (सल्लाहू अलैहि वसल्लम) के फरमान के मुताबिक जो ऐसा बोलता है वो इस्लामी शर्यत और कुरआन का मज़ाक उड़ा रहा होता है.

🔅इस एक तलाक के बाद बीवी 3 महीने यानि 3 तीन हैज़  (जिन्हें इद्दत कहा जाता है और अगर वो प्रेग्नेंट है तो बच्चा होने) तक शोहर ही के घर रहेगी और उसका खर्च भी शोहर ही के जुम्मे रहेगा लेकिन उनके बिस्तर अलग रहेंगे, कुरआन ने सूरेह तलाक में हुक्म फ़रमाया है कि इद्दत पूरी होने से पहले ना तो बीवी को ससुराल से निकाला जाए और ना ही वो खुद निकले, इसकी वजह कुरआन ने यह बतलाई है कि इससे उम्मीद है कि इद्दत के दौरान शोहर बीवी में सुलह हो जाए और वो तलाक का फैसला वापस लेने को तैयार हो जाएं.

❗अक्ल की रौशनी से अगर इस हुक्म पर गोर किया जाए तो मालूम होगा कि इसमें बड़ी अच्छी हिकमत है, हर मआशरे(समाज) में बीच में आज भड़काने वाले लोग मौजूद होते ही हैं, अगर बीवी तलाक मिलते ही अपनी माँ के घर चली जाए तो ऐसे लोगों को दोनों तरफ कान भरने का मौका मिल जाएगा, इसलिए यह ज़रूरी है कि बीवी इद्दत का वक़्त शोहर ही के घर गुज़ारे.

🔅फिर अगर शोहर बीवी में इद्दत के दौरान सुलह हो जाए तो फिरसे वो दोनों बिना कुछ किये शोहर और बीवी की हेस्यत से रह सकते हैं इसके लिए उन्हें सिर्फ इतना करना होगा कि जिन गवाहों के सामने तलाक दी थी उनको खबर करदें कि हम ने अपना फैसला बदल लिया है, कानून में इसे ही ”रुजू” करना कहते हैं और यह ज़िन्दगी में दो बार किया जा सकता है इससे ज्यादा नहीं. (सूरेह बक्राह-229)

🔅शोहर रुजू ना करे तो इद्दत के पूरा होने पर शोहर बीवी का रिश्ता ख़त्म हो जाएगा, लिहाज़ा कुरआन ने यह हिदायत फरमाई है कि इद्दत अगर पूरी होने वाली है तो शोहर को यह फैसला कर लेना चाहिए कि उसे बीवी को रोकना है या रुखसत करना है, दोनों ही सूरतों में अल्लाह का हुक्म है कि मामला भले तरीके से किया जाए, सूरेह बक्राह में हिदायत फरमाई है कि अगर बीवी को रोकने का फैसला किया है तो यह रोकना वीबी को परेशान करने के लिए हरगिज़ नहीं होना चाहिए बल्कि सिर्फ भलाई के लिए ही रोका जाए.

अल्लाह कुरआन में फरमाता है – “और जब तुम औरतों को तलाक दो और वो अपनी इद्दत के खात्मे पर पहुँच जाएँ तो या तो उन्हें भले तरीक़े से रोक लो या भले तरीक़े से रुखसत कर दो, और उन्हें नुक्सान पहुँचाने के इरादे से ना रोको के उनपर ज़ुल्म करो, और याद रखो के जो कोई ऐसा करेगा वो दर हकीकत अपने ही ऊपर ज़ुल्म ढाएगा, और अल्लाह की आयातों को मज़ाक ना बनाओ और अपने ऊपर अल्लाह की नेमतों को याद रखो और उस कानून और हिकमत को याद रखो जो अल्लाह ने उतारी है जिसकी वो तुम्हे नसीहत करता है, और अल्लाह से डरते रहो और ध्यान रहे के अल्लाह हर चीज़ से वाकिफ है” – (सूरेह बक्राह-231)

🔅लेकिन अगर उन्होंने इद्दत के दौरान रुजू नहीं किया और इद्दत का वक़्त ख़त्म हो गया तो अब उनका रिश्ता ख़त्म हो जाएगा, अब उन्हें जुदा होना है.
इस मौके पर कुरआन ने कम से कम दो जगह (सूरेह बक्राह आयत 229 और सूरेह निसा आयत 20 में) इस बात पर बहुत ज़ोर दिया है कि मर्द ने जो कुछ बीवी को पहले गहने, कीमती सामान, रूपये या कोई जाएदाद तोहफे के तौर पर दे रखी थी उसका वापस लेना शोहर के लिए बिल्कुल जायज़ नहीं है वो सब माल जो बीवी को तलाक से पहले दिया था वो अब भी बीवी का ही रहेगा और वो उस माल को अपने साथ लेकर ही घर से जाएगी, शोहर के लिए वो माल वापस मांगना या लेना या बीवी पर माल वापस करने के लिए किसी तरह का दबाव बनाना बिल्कुल जायज़ नहीं है.

नोट– अगर बीवी ने खुद तलाक मांगी थी जबकि शोहर उसके सारे हक सही से अदा कर रहा था या बीवी खुली बदकारी पर उतर आई थी जिसके बाद उसको बीवी बनाए रखना मुमकिन नहीं रहा था तो महर के अलावा उसको दिए हुए माल में से कुछ को वापस मांगना या लेना शोहर के लिए जायज़ है.)

🔘अब इसके बाद बीवी आज़ाद है वो चाहे जहाँ जाए और जिससे चाहे शादी करे, अब पहले शोहर का उस पर कोई हक बाकि नहीं रहा.

🔘इसके बाद तलाक देने वाला मर्द और औरत जब कभी ज़िन्दगी में दोबारा शादी करना चाहें तो वो कर सकते हैं इसके लिए उन्हें आम निकाह की तरह ही फिर से निकाह करना होगा और शोहर को महर देने होंगे और बीवी को महर लेने होंगे
❓अब फ़र्ज़ करें कि दूसरी बार निकाह करने के बाद कुछ समय के बाद उनमे फिरसे झगड़ा हो जाए और उनमे फिरसे तलाक हो जाए तो फिर से वही पूरा प्रोसेस दोहराना होगा जो ऊपर लिखा है,
❓अब फ़र्ज़ करें कि दूसरी बार भी तलाक के बाद वो दोनों आपस में शादी करना चाहें तो शरयत में तीसरी बार भी उन्हें निकाह करने की इजाज़त है.
लेकिन अब अगर उनको तलाक हुई तो यह तीसरी तलाक होगी जिस के बाद ना तो रुजू कर सकते हैं और ना ही आपस में निकाह किया जा सकता है.

हलाला:

👉🏿अब चौथी बार उनकी आपस में निकाह करने की कोई गुंजाइश नहीं लेकिन सिर्फ ऐसे कि अपनी आज़ाद मर्ज़ी से वो औरत किसी दुसरे मर्द से शादी करे और इत्तिफाक़ से उनका भी निभा ना हो सके और वो दूसरा शोहर भी उसे तलाक दे दे या मर जाए तो ही वो औरत पहले मर्द से निकाह कर सकती है, इसी को कानून में ”हलाला” कहते हैं.
लेकिन याद रहे यह इत्तिफ़ाक से हो तो जायज़ है जान बूझ कर या प्लान बना कर किसी और मर्द से शादी करना और फिर उससे सिर्फ इस लिए तलाक लेना ताकि पहले शोहर से निकाह जायज़ हो सके यह साजिश सरासर नाजायज़ है और अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ऐसी साजिश करने वालों पर लानत फरमाई है.

खुला:

👉🏿अगर सिर्फ बीवी तलाक चाहे तो उसे शोहर से तलाक मांगना होगी, अगर शोहर नेक इंसान होगा तो ज़ाहिर है वो बीवी को समझाने की कोशिश करेगा और फिर उसे एक तलाक दे देगा, लेकिन अगर शोहर मांगने के बावजूद भी तलाक नहीं देता तो बीवी के लिए इस्लाम में यह आसानी रखी गई है कि वो शहर काज़ी (जज) के पास जाए और उससे शोहर से तलाक दिलवाने के लिए कहे, इस्लाम ने काज़ी को यह हक़ दे रखा है कि वो उनका रिश्ता ख़त्म करने का ऐलान कर दे, जिससे उनकी तलाक हो जाएगी, कानून में इसे ”खुला” कहा जाता है.

✅ यही तलाक का सही तरीका है लेकिन अफ़सोस की बात है कि हमारे यहाँ इस तरीके की खिलाफ वर्जी भी होती है और कुछ लोग बिना सोचे समझे इस्लाम के खिलाफ तरीके से तलाक देते हैं जिससे खुद भी परेशानी उठाते हैं और इस्लाम की भी बदनामी होती है.
‼आजकल तीन तलाक के मसले पर जो बवाल मचा है वो 'हनफ़ी मसलक' के मुताबिक है,कुरान और हदीस के मुताबिक नहीं और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी तलाक के इसी तरीके की वकालत करता है। 
→केंद्र सरकार की तलाक के मामले में दखल देने की एक वजह ये भी है कि कहीं न कहीं
सरकार इस बात से वाकिफ है कि 'मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड' का ये तरीका कुरआन सम्मत नहीं है।

Thursday, October 20, 2016

जुमा की फ़ज़ीलत और आदाब

 🌹Qur'an🌷📖🌷sunnah🌹
🦃🦃🦃🍍🌹🍍🦃🦃🦃
                       🌷
        ┄─━━━━□□□━━━━─┄
🌺♻🌷

┬✭┬══════════════┬✭┬
         ﺑِﺴْــــــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ  l
       ┴✭┴══════════════┴✭┴

जुमा की फ़ज़ीलत और आदाब हदीस की रौशनी में*

✦ 1. अल क़ुरान: एह ईमान वालों जब ज़ूमा के दिन नमाज़ के लिए अज़ान दी जाए तो अल्लाह के ज़िक्र की तरह तेज़ी से आ जाओ और खरीद और फ़रोख़्त (कारोबार) छोड़ दो तुम्हारे लिए यही बात बेहतर है अगर तुम इल्म रखते हो. फिर जब नमाज़ अदा हो जाए तो ज़मीन में मुन्ताशिर हो जाओ (यानी चलो फ़िरो) और अल्लाह का फ़ज़ल (यानी रिज़क़) तलाश करो और अल्लाह को बहुत याद करो ताकि तुम फ़लाह पाओ.
अल क़ुरान, सुरह ज़ूमा (62), आयत : 9-10

✦ 2. अल कुरान : बेशक अल्लाह सुबहानहु और उसके फ़रिश्ते नबी सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दुरुद भेजते हैं , एह ईमान वालो तुम भी उन पर दुरुद और सलाम भेजा करो
सुरह अल-अहज़ाब (33) , आयत 56

✦ 3. हज़रत औस बिन औस रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया तुम्हारे तमाम दिनों में ज़ूमा का दिन सबसे अफ़ज़ल है की इस दिन हज़रत आदम अलैहि सलाम को पैदा किया गया और उसी दिन उनकी रूह क़ब्ज़ की गयी और इसी दिन सूर फूँका जाएगा और इसी दिन सब बेहोश होंगे इसलिए इस रोज़ (ज़ूमा को) मुझ पर ज़ियादा से ज़ियादा दुरुद भेजा करो क्यूंकी तुम्हारा दुरुद पढ़ना मुझ पर पेश किया जाता है, लोगों ने कहा या रसूल-अल्लाह सलल्लाल्हू अलैहि वसल्लम हमारा दुरुद पढ़ना आप पर किस तरह से पेश होगा जबकि आप तो मिट्टी हो गये होंगे,तो आप सलल्लाल्हू अलैहि वसल्लम ने फरमाया अल्लाह ताला ने अम्बिया कराम के जिस्म को मिट्टी पर हराम कर दिया है.
सुनन अबू दावूद जिल्द 1,1035 - सही

✦ 4. हज़रत अनस बिन मलिक रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो शक्ष मुझ पर एक मर्तबा दुरुद भेजेगा तो अल्लाह सुबहानहु उस पर 10 मर्तबा रहमत भेजेगा और उसके 10 गुनाह माफ़ होंगे और 10 दरजात बुलंद होंगे
सुनन आन नसाई, जिल्द 1, 1300-सही

✦ 5. अबू हुरैरा रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जब ज़ूमा का दिन आता है तो फरिश्ते मस्जिद के दरवाज़े पर आने वालों का नाम लिखते हैं सबसे पहले आने वाला ऊँट की क़ुर्बानी देने वाले की तरह लिखा जाता है, उसके बाद  आने वाला गाय की क़ुर्बानी देने वाले की तरह फिर मैंडे (भेड़) की क़ुर्बानी का सवाब मिलता है , उसके बाद मुर्गी  का, उसके बाद अंडे  का लेकिन जब इमाम (ख़ुतबा देने के लिए) बाहर आ जाता है तो ये फरिश्ते अपने दफ़्तर बंद कर देते हैं और  ख़ुतबा सुनने में मशगूल हो जाते हैं.
सही बुखारी, जिल 2, #929
✦ 6. सलमान  फ़ारसी  रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जिसने ज़ूमा के दिन गुसल किया और खूब पाकी हासिल की और तेल या खुश्बू इस्तेमाल की फिर ज़ूमा के लिए चला और दो आदमियों के बीच में ना घुसा (यानि मस्जिद में बैठे लोगों के ऊपर से फलांगता हुआ ना गया ) और जितनी उसकी किस्मत में थी नमाज़ पढ़ी फिर जब इमाम बाहर आया और ख़ुतबा शुरू किया तो खामोश हो गया,उसके इस ज़ूमा से गुज़रे  ज़ूमा तक के तमाम गुनाह बख्श दिए जाएँगे.
सही बुखारी, जिल्द 2, 910

✦ 7. ईब्न  अब्बास रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम  ने फरमाया ये दिन (ज़ूमा ) ईद का दिन है जो अल्लाह ने मुसलमानो को अता फरमाया है, इसलिए जो ज़ूमा के लिए आए  तो गुसल कर ले और खुश्बू मिल जाए तो लगा ले और तुम पर मिस्वाक भी  है 
सुनन इब्न माजा , जिल्द  1, 1098-हसन

✦ 8. अबू सईद खुदरी रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो (मुसलमान) जुमा के दिन सुराह अल-कहफ़ की तिलावत करे तो उसके लिए इस जुमा से अगले जुमा तक एक नूर चमकता रहेगा
मुस्तदरक हाकीम 3392-सही
सही अल-जामीअ 6470

✦ 9. रसूल-अल्लाह सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम  ने अपने मिंबर पर से इरशाद फरमाया लोगों को नमाज़ ज़ूमा तर्क करने (छोड़  देने) से बाज़ रहना चाहिए नही तो अल्लाह ताला उनके दिलों पर मुहर लगा देगा फिर वो गाफिलिन में हो जाएँगे
सुनन  नसाई, जिल्द 1, # 1373-सही

✦ 10. अबू हुरैरा रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया पाँचो नमाजें और (एक) ज़ूमा (दूसरे) ज़ूमा तक का कफ्फारा है (उन गुनाहों से) जो इनके दरमियाँ हो जाते हैं जब तक की कोई कबीरा गुनाह ना करे
सही मुस्लिम, जिल्द1 , 550

✦ 11. अबू हुरैरा रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की अबू अल-क़ासिम (यानी रसूल-अल्लाह)  सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया ज़ूमा में एक घड़ी ऐसी आती है की जो मुसलमान भी उस वक़्त खड़ा होकर नमाज़ पढ़े और अल्लाह से कोई खैर माँगे तो अल्लाह सुबहानहु उसको ज़रूर देगा
सही बुखारी, जिल्द 6, 5294

✦ 12. जाबिर रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया ज़ूमा का दिन 12 घंटे का है जिसमे कोई मोमीन बंदा अल्लाह सुबहानहु से कुछ माँगे तो अल्लाह उसको ज़रूर अता फरमाते है , तुम लोग उसको असर के बाद आखरी वक़्त में तलाश करो
सुनन नसाई, जिल्द1,1392-सही

✦ 13. अनस बिन मलिक रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया ज़ूमा के दिन (दुआ क़ुबूल होने की) वो मुबारक घड़ी को असर और गुरुब ए आफताब (यानि मगरिब) के दरमियान तलाश करो
जामिया तिरमिज़ी, जिल्द 1, 471-सही

✦ 14. अब्दुल्लाह बिन अम्र रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह  सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया जिस मुसलमान की वफात ज़ूमा के दिन या ज़ूमा की रात को होती है उसको अल्लाह सुबहानहु क़ब्र के फितने से महफूज़  रखता है
जामिया तिर्मीज़ी, जिल्द 1, 1063-हसन

✦ 15. अब्दुल्लाह इब्न उमर रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम  ने फरमाया ज़ूमा में 3 तरह के लोग आते हैं, एक तो वो जो वहां आकर बेहूदा बात करे, उसका हिस्सा यही है (यानी उसको कुछ सवाब ना मिलेगा) और दूसरा वो है जो वहाँ आकर अल्लाह सुबहानहु से दुआ करे अगर अल्लाह चाहेगा तो उसकी दुआ क़ुबूल करेगा और चाहेगा तो नही करेगा, और तीसरे  वो है जो वहाँ आकर खामोशी से बैठ जाए ना लोगों की गर्दनें फाँद कर आगे बड़े और ना किसी को तकलीफ़ पहुचाए तो उसका ये अमल इस ज़ूमा से लेकर अगली ज़ूमा तक बल्कि और तीन दिन ज़ियादा तक के लिए गुनाहों का कफ़्फ़रा बन जाएगा, क्यूंकी अल्लाह सुबहानहु का इरशाद है की जो शख्स एक नेकी करता है उसको 10 गुना सवाब मिलेगा
सुनन अबू दाऊद, जिल्द 1 ,1101-हसन

✦ 16. जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की एक शख्स आया जब रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम  ज़ूमा का ख़ुतबा दे रहे थे , आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम  ने पूछा एह फ़लाह क्या तुमने नमाज़ पढ़ी उसने  कहा नही तो आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया उठो और 2 रकात नमाज़ अदा करो
सही बुखारी, जिल्द 1, 930

✦ 17. जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम  ने फरमाया की जब कोई ज़ूमा के दिन आए और इमाम ख़ुतबा के लिए बाहर आ गया हो तो भी 2 रकात पढ़ ले.
सही मुस्लिम, जिल्द 2, 2022

✦ 18. जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की सुलैक गत्फानी  रदी अल्लाहू अन्हु ज़ूमा के दिन मस्जिद में आए तब रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम मिंबर पर तशरीफ़ फरमा थे सुलैक गत्फानी  रदी अल्लाहू अन्हु  बैठ गये और नमाज़ ना पढ़ी तो आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने पूछा  , क्या तुमने 2 रकात नमाज़ पढ़ी तो उन्होने कहा नही फिर आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया उठो और 2 रकात नमाज़

अदा करो और मुख़्तसर (छोटी करके) पढ़ो फिर आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया जब तुम में से कोई शख्स ज़ूमा के दिन आए और इमाम ख़ुतबा दे रहा हो तो (भी) उसको 2 रकात (नमाज़) पढ़ना चाहिए और उसको मुख़्तसर कर देना  चाहिए
सही मुस्लिम, जिल्द 2, 2024

✦ 19. अबू हुरैरा रदी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सल-अल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया जब तुम में से कोई ज़ूमा की (फ़र्ज़) नमाज़ पढ़ चुके तो उसे चाहिए की उसके बाद चार रकात नमाज़ अदा करे
सुनन नसाई जिल्द 1, 1429-सही

✦ 20. तारिक इब्न शिहाब रदी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया ज़ूमा की नमाज़ जमात के साथ हर मुसलमान पर वाजिब है सिवाए चार के , गुलाम पर , औरत पर, बच्चे पर और बीमार पर ( ज़ूमा की नमाज़ वाजिब नही)
सुनन अबू दाऊद, जिल्द 1, 1055-सही
---------------
🌻🌻🌻🌻🌻

Thursday, October 13, 2016

*क्या आपने कभी इन पश्चिमी philosophers को पढ़ा है:

*क्या आपने कभी इन पश्चिमी philosophers को पढ़ा है:*
----------------------------------------------

1. *लियो टॉल्स्टॉय (1828 -1910):*

"इस्लाम ही एक दिन दुनिया पर राज करेगी, क्योंकि इसी में ज्ञान और बुद्धि का संयोजन है"।

2. *हर्बर्ट वेल्स (1846 - 1946):*

" इस्लाम का प्रभावीकरण फिर होने तक अनगिनत कितनी पीढ़ियां अत्याचार सहेंगी और जीवन कट जाएगा । तभी एक दिन पूरी दुनिया उसकी ओर आकर्षित हो जाएगी, उसी दिन ही दिलशाद होंगे और उसी दिन दुनिया आबाद होगी । सलाम हो उस दिन को "।

3. *अल्बर्ट आइंस्टीन (1879 - 1955):*

"मैं समझता हूँ कि मुसलमानो ने अपनी बुद्धि और जागरूकता के माध्यम से वह किया जो यहूदी न कर सके । इस्लाम मे ही वह शक्ति है जिससे शांति स्थापित हो सकती है"।

4. *हस्टन स्मिथ (1919):*

"जो विश्वास हम पर है और इस हम से बेहतर कुछ भी दुनिया में है तो वो इस्लाम है । अगर हम अपना दिल और दिमाग इसके लिए खोलें तो उसमें हमारी ही भलाई होगी"।

5. *माइकल नोस्टरैडैमस (1503 - 1566):*

" इस्लाम ही यूरोप में शासक धर्म बन जाएगा बल्कि यूरोप का प्रसिद्ध शहर इस्लामिक स्टेट राजधानी बन जाएगा"।

6. *बर्टरेंड रसेल (1872 - 1970):*

"मैंने इस्लाम को पढ़ा और जान लिया कि यह सारी दुनिया और सारी मानवता का धर्म बनने के लिए है । इस्लाम  पूरे यूरोप में फैल जाएगा और यूरोप में इस्लाम  के बड़े विचारक सामने आएंगे । एक दिन ऐसा आएगा कि इस्लाम ही दुनिया की वास्तविक उत्तेजना होगा "।

7. *गोस्टा लोबोन (1841 - 1931):*

" इस्लाम ही सुलह और सुधार की बात करता है । सुधार ही के विश्वास की सराहना में ईसाइयों को आमंत्रित करता हूँ"।

8.  *बरनार्ड शा (1856 - 1950):*

"सारी दुनिया एक दिन इस्लाम धर्म स्वीकार कर लेगी । अगर यह वास्तविक नाम स्वीकार नहीं भी कर सकी तो रूपक नाम से ही स्वीकार कर लेगी। पश्चिम एक दिन इस्लाम स्वीकार कर लेगा और उसलम ही दुनिया में पढ़े लिखे लोगों का धर्म होगा "।

9. *जोहान गीथ (1749 - 1832):*

"हम सभी को अभी या बाद मे इस्लाम  धर्म स्वीकार करना ही होगा । यही असली धर्म है ।मुझे कोई मुसलमान कहे तो मुझे बुरा नहीं लगेगा, मैं यह सही बात को स्वीकार करता हूँ ।"
*Plz share to all ur links*

Wednesday, October 12, 2016

ोल ताशे से मुहर्रम को मनाने वाले

ڈهول تاشے سے محرم کو منانے والے
غم سے شہداء کی بڑی دهوم مچانے والے

ढोल ताशे से मुहर्रम को मनाने वाले
गम से शुहदा की बड़ी धूम मचाने वाले

تعزیہ اور سواری کے اٹهانے والے
باغ اور شیر  کو نچانے والے

ताज़िया और सवारी के उठाने वाले
बाग ए और शेर को नचाने वाले

چاند جب ماہ محرم کا نظر آتا ہے
کیا تیرے جسم میں شیطان اتر آتا ہے

चाँद जब माहे मुहर्रम का नज़र आता है
क्या तेरे जिस्म में शैतान उतर आता है

غم جنهیں ہوتا ہے وہ ڈهول بجاتے ہیں کہیں
دوسروں کی طرح تہوار مناتے ہیں کہیں

गम जिन्हें होता हे वह ढोल बजाते हैं कहीं
दूसरो की तरह तहवार मनाते हैं कहीं

وہ خرافات کا بازار لگاتے ہیں کہیں
ڈهول باجے سے بهی میت کو اٹهاتے ہیں کہیں

वो खुराफात का बाजार लगाते हैं कहीं
ढोल बाजे से भी मय्यत को उठाते हैं कहीं

کیا شریعت میں تمهارے اسے غم کہتے ہیں
غم یہی ہے تو خوشی اور کسے کہتے ہیں

क्या शरीअत में तुम्हारी इसे गम कहते हैं
गम यही हे तो ख़ुशी और किसे कहते हैं

تعزیہ داری کو تیمور نے ایجاد کیا
لایا ایران سے اور ہند میں آباد کیا

ताज़िया दारी को तैमूर ने ईजाद किया
लाया ईरान से और हिन्द में आबाद किया

غم منانے کا عجب ڈهنگ یہ ایجار کیا
روح اسلام کو تیمور نے برباد کیا

गम मनाने का अजब ढंग ये ईजाद किया
रूह ए इस्लाम को तैमूर ने बर्बाद किया

فعل تیمور ہے یہ قول پیمبر تو نہیں
غم کا یہ رنگ شریعت کے برابر تو نہیں

फाल तैमूर हे यह कौल ए पयम्बर तो नहीं
गम का यह रंग शरीअत के बराबर तो नही

خوب ہے ابن علی سے یہ محبت تیری
ساری دنیا سے نرالی ہے عقیدت تیری

खूब हे इब्न ए अली से यह मुहब्बत तेरी
सारी दुन्या से निराली है अक़ीदत तेरी

تعزیہ اور سواری ہے عبادت تیری
عشق بازی کی محرم میں ہے عادت تیری

ताज़िया और सवारी हे इबादत तेरी
इश्क़ बाज़ी की मुहर्रम में हे आदत तेरी

غم تجهے ہے تو ذرا اتنا ہی کر کے بتلا
ڈهول تاشے سے ذرا باپ کی میت کو اٹها

गम तुझे है तो ज़रा इतना ही कर के बतला
ढोल ताशे से ज़रा बाप की मय्यत को उठा

Tuesday, September 13, 2016

हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) आखरी भाषण (खुतबा)


प्यारे भाइयो! मैं जो कुछ कहूँ, ध्यान से सुनो।
ऐ इंसानो! तुम्हारा रब एक है।

अल्लाह की किताब और
उसके रसूल की सुन्नत को मजबूती से पकड़े रहना।

लोगों की जान-माल और इज़्ज़त का ख़याल रखना,
ना तुम लोगो पर ज़ुल्म करो, 
ना क़यामत में तुम्हारे साथ ज़ुल्म किया जायगा। 

कोई अमानत रखे तो उसमें ख़यानत न करना।
ब्याज के क़रीब न भटकना।

किसी अरबी को किसी अजमी (ग़ैर अरबी) पर कोई बड़ाई नहीं, 
न किसी अजमी को किसी अरबी पर, 
न गोरे को काले पर, 
न काले को गोरे पर, 
प्रमुखता अगर किसी को है तो सिर्फ तक़वा(धर्मपरायणता) व 
परहेज़गारी से है 
अर्थात् रंग, जाति, नस्ल, देश, क्षेत्र किसी की श्रेष्ठता का आधार नहीं है। 
बड़ाई का आधार अगर कोई है तो ईमान और चरित्र है।

तुम्हारे ग़ुलाम, जो कुछ ख़ुद खाओ, 
वही उनको खिलाओ और जो ख़ुद पहनो, वही उनको पहनाओ।

अज्ञानता के तमाम विधान और नियम मेरे पाँव के नीचे हैं।

इस्लाम आने से पहले के तमाम ख़ून खत्म कर दिए गए। 
(अब किसी को किसी से पुराने ख़ून का बदला लेने का हक़ नहीं) 
और सबसे पहले मैं अपने ख़ानदान का ख़ून–रबीआ इब्न हारिस का 
ख़ून– ख़त्म करता हूँ (यानि उनके कातिलों को क्षमा करता हूँ)|

अज्ञानकाल के सभी ब्याज ख़त्म किए जाते हैं 
और सबसे पहले मैं अपने ख़ानदान में से 
अब्बास इब्न मुत्तलिब का ब्याज ख़त्म करता हूँ।

औरतों के मामले में अल्लाह से डरो। 
तुम्हारा औरतों पर और औरतों का तुम पर अधिकार है।

औरतों के मामले में मैं तुम्हें वसीयत करता हूँ कि 
उनके साथ भलाई का रवैया अपनाओ।

लोगो! याद रखो, मेरे बाद कोई नबी नहीं 
और तुम्हारे बाद कोई उम्मत (समुदाय) नहीं। 

अत: अपने रब की इबादत करना, 
प्रतिदिन पाँचों वक़्त की नमाज़ पढ़ना। 
रमज़ान के रोज़े रखना, 
खुशी-खुशी अपने माल की ज़कात देना, 
अपने पालनहार के घर का हज करना 
और अपने हाकिमों का आज्ञापालन करना। 
ऐसा करोगे तो अपने रब की जन्नत में दाख़िल होगे। 

ऐ लोगो! क्या मैंने अल्लाह का पैग़ाम तुम तक पहुँचा दिया!
(लोगों की भारी भीड़ एक साथ बोल उठी–)
हाँ, ऐ अल्लाह के रसूल!
(तब हजरत मुहम्मद स. ने तीन बार कहा)
ऐ अल्लाह, तू गवाह रहना

(उसके बाद क़ुरआन की यह आखिरी आयत उतरी)

"आज मैंने तुम्हारे लिए दीन (सत्य धर्म) को पूरा कर दिया और तुम पर अपनी नेमत (कृपा) पूरी कर दी". Quran 5:3