Thursday, October 27, 2016

तलाक की हकीकत


यूं तो तलाक़ कोई अच्छी चीज़ नहीं है और सभी लोग इसको ना पसंद करते हैं इस्लाम में भी यह एक बुरी बात समझी जाती है लेकिन इसका मतलब यह हरगिज़ नहीं कि तलाक़ का हक ही इंसानों से छीन लिया जाए,

✳पति पत्नी में अगर किसी तरह भी निबाह नहीं हो पा रहा है तो अपनी ज़िदगी जहन्नम बनाने से बहतर है कि वो अलग हो कर अपनी ज़िन्दगी का सफ़र अपनी मर्ज़ी से पूरा करें जो कि इंसान होने के नाते उनका हक है, इसी लिए दुनियां भर के कानून में तलाक़ की गुंजाइश मौजूद है.और इसी लिए पैगम्बरों के दीन (धर्म) में भी तलाक़ की गुंजाइश हमेशा से रही है,..

✳दीने इब्राहीम की रिवायात के मुताबिक अरब जाहिलियत के दौर में भी तलाक़ से अनजान नहीं थे, उनका इतिहास बताता है कि तलाक़ का कानून उनके यहाँ भी लगभग वही था जो अब इस्लाम में है लेकिन कुछ बिदअतें उन्होंने इसमें भी दाखिल कर दी थी.

🔅किसी जोड़े में तलाक की नौबत आने से पहले हर किसी की यह कोशिश होनी चाहिए कि जो रिश्ते की डोर एक बार बन्ध गई है उसे मुमकिन हद तक टूटने से बचाया जाए,

🔅जब किसी पति-पत्नी का झगड़ा बढ़ता दिखाई दे तो अल्लाह ने कुरआन में उनके करीबी रिश्तेदारों और उनका भला चाहने वालों को यह हिदायत दी है कि वो आगे बढ़ें और मामले को सुधारने की कोशिश करें इसका तरीका कुरआन ने यह बतलाया है कि – “एक फैसला करने वाला शोहर के खानदान में से मुकर्रर करें और एक फैसला करने वाला बीवी के खानदान में से चुने और वो दोनों जज मिल कर उनमे सुलह कराने की कोशिश करें, इससे उम्मीद है कि जिस झगड़े को पति पत्नी नहीं सुलझा सके वो खानदान के बुज़ुर्ग और दूसरे हमदर्द लोगों के बीच में आने से सुलझ जाए”..

कुरआन ने इसे कुछ यूं बयान किया है – 
“और अगर तुम्हे शोहर बीवी में फूट पड़ जाने का अंदेशा हो तो एक हकम (जज) मर्द के लोगों में से और एक औरत के लोगों में से मुक़र्रर कर दो, अगर शोहर बीवी दोनों सुलह चाहेंगे तो अल्लाह उनके बीच सुलह करा देगा, बेशक अल्लाह सब कुछ जानने वाला और सब की खबर रखने वाला है” – (सूरेह निसा-35)

🔅इसके बावजूद भी अगर शोहर और बीवी दोनों या दोनों में से किसी एक ने तलाक का फैसला कर ही लिया है तो शोहर बीवी के खास दिनों (Menstruation) के आने का इन्तिज़ार करे, और खास दिनों के गुज़र जाने के बाद जब बीवी पाक़ हो जाए तो बिना हम बिस्तर हुए कम से कम दो जिम्मेदार लोगों को गवाह बना कर उनके सामने बीवी को एक तलाक दे, यानि शोहर बीवी से सिर्फ इतना कहे कि 
”मैं तुम्हे तलाक देता हूँ”.
❗ तलाक हर हाल में एक ही दी जाएगी दो या तीन या सौ नहीं, जो लोग जिहालत की हदें पार करते हुए दो तीन या हज़ार तलाक बोल देते हैं यह इस्लाम के बिल्कुल खिलाफ अमल है और बहुत बड़ा गुनाह है
              अल्लाह के रसूल (सल्लाहू अलैहि वसल्लम) के फरमान के मुताबिक जो ऐसा बोलता है वो इस्लामी शर्यत और कुरआन का मज़ाक उड़ा रहा होता है.

🔅इस एक तलाक के बाद बीवी 3 महीने यानि 3 तीन हैज़  (जिन्हें इद्दत कहा जाता है और अगर वो प्रेग्नेंट है तो बच्चा होने) तक शोहर ही के घर रहेगी और उसका खर्च भी शोहर ही के जुम्मे रहेगा लेकिन उनके बिस्तर अलग रहेंगे, कुरआन ने सूरेह तलाक में हुक्म फ़रमाया है कि इद्दत पूरी होने से पहले ना तो बीवी को ससुराल से निकाला जाए और ना ही वो खुद निकले, इसकी वजह कुरआन ने यह बतलाई है कि इससे उम्मीद है कि इद्दत के दौरान शोहर बीवी में सुलह हो जाए और वो तलाक का फैसला वापस लेने को तैयार हो जाएं.

❗अक्ल की रौशनी से अगर इस हुक्म पर गोर किया जाए तो मालूम होगा कि इसमें बड़ी अच्छी हिकमत है, हर मआशरे(समाज) में बीच में आज भड़काने वाले लोग मौजूद होते ही हैं, अगर बीवी तलाक मिलते ही अपनी माँ के घर चली जाए तो ऐसे लोगों को दोनों तरफ कान भरने का मौका मिल जाएगा, इसलिए यह ज़रूरी है कि बीवी इद्दत का वक़्त शोहर ही के घर गुज़ारे.

🔅फिर अगर शोहर बीवी में इद्दत के दौरान सुलह हो जाए तो फिरसे वो दोनों बिना कुछ किये शोहर और बीवी की हेस्यत से रह सकते हैं इसके लिए उन्हें सिर्फ इतना करना होगा कि जिन गवाहों के सामने तलाक दी थी उनको खबर करदें कि हम ने अपना फैसला बदल लिया है, कानून में इसे ही ”रुजू” करना कहते हैं और यह ज़िन्दगी में दो बार किया जा सकता है इससे ज्यादा नहीं. (सूरेह बक्राह-229)

🔅शोहर रुजू ना करे तो इद्दत के पूरा होने पर शोहर बीवी का रिश्ता ख़त्म हो जाएगा, लिहाज़ा कुरआन ने यह हिदायत फरमाई है कि इद्दत अगर पूरी होने वाली है तो शोहर को यह फैसला कर लेना चाहिए कि उसे बीवी को रोकना है या रुखसत करना है, दोनों ही सूरतों में अल्लाह का हुक्म है कि मामला भले तरीके से किया जाए, सूरेह बक्राह में हिदायत फरमाई है कि अगर बीवी को रोकने का फैसला किया है तो यह रोकना वीबी को परेशान करने के लिए हरगिज़ नहीं होना चाहिए बल्कि सिर्फ भलाई के लिए ही रोका जाए.

अल्लाह कुरआन में फरमाता है – “और जब तुम औरतों को तलाक दो और वो अपनी इद्दत के खात्मे पर पहुँच जाएँ तो या तो उन्हें भले तरीक़े से रोक लो या भले तरीक़े से रुखसत कर दो, और उन्हें नुक्सान पहुँचाने के इरादे से ना रोको के उनपर ज़ुल्म करो, और याद रखो के जो कोई ऐसा करेगा वो दर हकीकत अपने ही ऊपर ज़ुल्म ढाएगा, और अल्लाह की आयातों को मज़ाक ना बनाओ और अपने ऊपर अल्लाह की नेमतों को याद रखो और उस कानून और हिकमत को याद रखो जो अल्लाह ने उतारी है जिसकी वो तुम्हे नसीहत करता है, और अल्लाह से डरते रहो और ध्यान रहे के अल्लाह हर चीज़ से वाकिफ है” – (सूरेह बक्राह-231)

🔅लेकिन अगर उन्होंने इद्दत के दौरान रुजू नहीं किया और इद्दत का वक़्त ख़त्म हो गया तो अब उनका रिश्ता ख़त्म हो जाएगा, अब उन्हें जुदा होना है.
इस मौके पर कुरआन ने कम से कम दो जगह (सूरेह बक्राह आयत 229 और सूरेह निसा आयत 20 में) इस बात पर बहुत ज़ोर दिया है कि मर्द ने जो कुछ बीवी को पहले गहने, कीमती सामान, रूपये या कोई जाएदाद तोहफे के तौर पर दे रखी थी उसका वापस लेना शोहर के लिए बिल्कुल जायज़ नहीं है वो सब माल जो बीवी को तलाक से पहले दिया था वो अब भी बीवी का ही रहेगा और वो उस माल को अपने साथ लेकर ही घर से जाएगी, शोहर के लिए वो माल वापस मांगना या लेना या बीवी पर माल वापस करने के लिए किसी तरह का दबाव बनाना बिल्कुल जायज़ नहीं है.

नोट– अगर बीवी ने खुद तलाक मांगी थी जबकि शोहर उसके सारे हक सही से अदा कर रहा था या बीवी खुली बदकारी पर उतर आई थी जिसके बाद उसको बीवी बनाए रखना मुमकिन नहीं रहा था तो महर के अलावा उसको दिए हुए माल में से कुछ को वापस मांगना या लेना शोहर के लिए जायज़ है.)

🔘अब इसके बाद बीवी आज़ाद है वो चाहे जहाँ जाए और जिससे चाहे शादी करे, अब पहले शोहर का उस पर कोई हक बाकि नहीं रहा.

🔘इसके बाद तलाक देने वाला मर्द और औरत जब कभी ज़िन्दगी में दोबारा शादी करना चाहें तो वो कर सकते हैं इसके लिए उन्हें आम निकाह की तरह ही फिर से निकाह करना होगा और शोहर को महर देने होंगे और बीवी को महर लेने होंगे
❓अब फ़र्ज़ करें कि दूसरी बार निकाह करने के बाद कुछ समय के बाद उनमे फिरसे झगड़ा हो जाए और उनमे फिरसे तलाक हो जाए तो फिर से वही पूरा प्रोसेस दोहराना होगा जो ऊपर लिखा है,
❓अब फ़र्ज़ करें कि दूसरी बार भी तलाक के बाद वो दोनों आपस में शादी करना चाहें तो शरयत में तीसरी बार भी उन्हें निकाह करने की इजाज़त है.
लेकिन अब अगर उनको तलाक हुई तो यह तीसरी तलाक होगी जिस के बाद ना तो रुजू कर सकते हैं और ना ही आपस में निकाह किया जा सकता है.

हलाला:

👉🏿अब चौथी बार उनकी आपस में निकाह करने की कोई गुंजाइश नहीं लेकिन सिर्फ ऐसे कि अपनी आज़ाद मर्ज़ी से वो औरत किसी दुसरे मर्द से शादी करे और इत्तिफाक़ से उनका भी निभा ना हो सके और वो दूसरा शोहर भी उसे तलाक दे दे या मर जाए तो ही वो औरत पहले मर्द से निकाह कर सकती है, इसी को कानून में ”हलाला” कहते हैं.
लेकिन याद रहे यह इत्तिफ़ाक से हो तो जायज़ है जान बूझ कर या प्लान बना कर किसी और मर्द से शादी करना और फिर उससे सिर्फ इस लिए तलाक लेना ताकि पहले शोहर से निकाह जायज़ हो सके यह साजिश सरासर नाजायज़ है और अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ऐसी साजिश करने वालों पर लानत फरमाई है.

खुला:

👉🏿अगर सिर्फ बीवी तलाक चाहे तो उसे शोहर से तलाक मांगना होगी, अगर शोहर नेक इंसान होगा तो ज़ाहिर है वो बीवी को समझाने की कोशिश करेगा और फिर उसे एक तलाक दे देगा, लेकिन अगर शोहर मांगने के बावजूद भी तलाक नहीं देता तो बीवी के लिए इस्लाम में यह आसानी रखी गई है कि वो शहर काज़ी (जज) के पास जाए और उससे शोहर से तलाक दिलवाने के लिए कहे, इस्लाम ने काज़ी को यह हक़ दे रखा है कि वो उनका रिश्ता ख़त्म करने का ऐलान कर दे, जिससे उनकी तलाक हो जाएगी, कानून में इसे ”खुला” कहा जाता है.

✅ यही तलाक का सही तरीका है लेकिन अफ़सोस की बात है कि हमारे यहाँ इस तरीके की खिलाफ वर्जी भी होती है और कुछ लोग बिना सोचे समझे इस्लाम के खिलाफ तरीके से तलाक देते हैं जिससे खुद भी परेशानी उठाते हैं और इस्लाम की भी बदनामी होती है.
‼आजकल तीन तलाक के मसले पर जो बवाल मचा है वो 'हनफ़ी मसलक' के मुताबिक है,कुरान और हदीस के मुताबिक नहीं और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी तलाक के इसी तरीके की वकालत करता है। 
→केंद्र सरकार की तलाक के मामले में दखल देने की एक वजह ये भी है कि कहीं न कहीं
सरकार इस बात से वाकिफ है कि 'मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड' का ये तरीका कुरआन सम्मत नहीं है।

Thursday, October 20, 2016

जुमा की फ़ज़ीलत और आदाब

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         ﺑِﺴْــــــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ  l
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जुमा की फ़ज़ीलत और आदाब हदीस की रौशनी में*

✦ 1. अल क़ुरान: एह ईमान वालों जब ज़ूमा के दिन नमाज़ के लिए अज़ान दी जाए तो अल्लाह के ज़िक्र की तरह तेज़ी से आ जाओ और खरीद और फ़रोख़्त (कारोबार) छोड़ दो तुम्हारे लिए यही बात बेहतर है अगर तुम इल्म रखते हो. फिर जब नमाज़ अदा हो जाए तो ज़मीन में मुन्ताशिर हो जाओ (यानी चलो फ़िरो) और अल्लाह का फ़ज़ल (यानी रिज़क़) तलाश करो और अल्लाह को बहुत याद करो ताकि तुम फ़लाह पाओ.
अल क़ुरान, सुरह ज़ूमा (62), आयत : 9-10

✦ 2. अल कुरान : बेशक अल्लाह सुबहानहु और उसके फ़रिश्ते नबी सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दुरुद भेजते हैं , एह ईमान वालो तुम भी उन पर दुरुद और सलाम भेजा करो
सुरह अल-अहज़ाब (33) , आयत 56

✦ 3. हज़रत औस बिन औस रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया तुम्हारे तमाम दिनों में ज़ूमा का दिन सबसे अफ़ज़ल है की इस दिन हज़रत आदम अलैहि सलाम को पैदा किया गया और उसी दिन उनकी रूह क़ब्ज़ की गयी और इसी दिन सूर फूँका जाएगा और इसी दिन सब बेहोश होंगे इसलिए इस रोज़ (ज़ूमा को) मुझ पर ज़ियादा से ज़ियादा दुरुद भेजा करो क्यूंकी तुम्हारा दुरुद पढ़ना मुझ पर पेश किया जाता है, लोगों ने कहा या रसूल-अल्लाह सलल्लाल्हू अलैहि वसल्लम हमारा दुरुद पढ़ना आप पर किस तरह से पेश होगा जबकि आप तो मिट्टी हो गये होंगे,तो आप सलल्लाल्हू अलैहि वसल्लम ने फरमाया अल्लाह ताला ने अम्बिया कराम के जिस्म को मिट्टी पर हराम कर दिया है.
सुनन अबू दावूद जिल्द 1,1035 - सही

✦ 4. हज़रत अनस बिन मलिक रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो शक्ष मुझ पर एक मर्तबा दुरुद भेजेगा तो अल्लाह सुबहानहु उस पर 10 मर्तबा रहमत भेजेगा और उसके 10 गुनाह माफ़ होंगे और 10 दरजात बुलंद होंगे
सुनन आन नसाई, जिल्द 1, 1300-सही

✦ 5. अबू हुरैरा रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जब ज़ूमा का दिन आता है तो फरिश्ते मस्जिद के दरवाज़े पर आने वालों का नाम लिखते हैं सबसे पहले आने वाला ऊँट की क़ुर्बानी देने वाले की तरह लिखा जाता है, उसके बाद  आने वाला गाय की क़ुर्बानी देने वाले की तरह फिर मैंडे (भेड़) की क़ुर्बानी का सवाब मिलता है , उसके बाद मुर्गी  का, उसके बाद अंडे  का लेकिन जब इमाम (ख़ुतबा देने के लिए) बाहर आ जाता है तो ये फरिश्ते अपने दफ़्तर बंद कर देते हैं और  ख़ुतबा सुनने में मशगूल हो जाते हैं.
सही बुखारी, जिल 2, #929
✦ 6. सलमान  फ़ारसी  रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जिसने ज़ूमा के दिन गुसल किया और खूब पाकी हासिल की और तेल या खुश्बू इस्तेमाल की फिर ज़ूमा के लिए चला और दो आदमियों के बीच में ना घुसा (यानि मस्जिद में बैठे लोगों के ऊपर से फलांगता हुआ ना गया ) और जितनी उसकी किस्मत में थी नमाज़ पढ़ी फिर जब इमाम बाहर आया और ख़ुतबा शुरू किया तो खामोश हो गया,उसके इस ज़ूमा से गुज़रे  ज़ूमा तक के तमाम गुनाह बख्श दिए जाएँगे.
सही बुखारी, जिल्द 2, 910

✦ 7. ईब्न  अब्बास रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम  ने फरमाया ये दिन (ज़ूमा ) ईद का दिन है जो अल्लाह ने मुसलमानो को अता फरमाया है, इसलिए जो ज़ूमा के लिए आए  तो गुसल कर ले और खुश्बू मिल जाए तो लगा ले और तुम पर मिस्वाक भी  है 
सुनन इब्न माजा , जिल्द  1, 1098-हसन

✦ 8. अबू सईद खुदरी रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो (मुसलमान) जुमा के दिन सुराह अल-कहफ़ की तिलावत करे तो उसके लिए इस जुमा से अगले जुमा तक एक नूर चमकता रहेगा
मुस्तदरक हाकीम 3392-सही
सही अल-जामीअ 6470

✦ 9. रसूल-अल्लाह सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम  ने अपने मिंबर पर से इरशाद फरमाया लोगों को नमाज़ ज़ूमा तर्क करने (छोड़  देने) से बाज़ रहना चाहिए नही तो अल्लाह ताला उनके दिलों पर मुहर लगा देगा फिर वो गाफिलिन में हो जाएँगे
सुनन  नसाई, जिल्द 1, # 1373-सही

✦ 10. अबू हुरैरा रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया पाँचो नमाजें और (एक) ज़ूमा (दूसरे) ज़ूमा तक का कफ्फारा है (उन गुनाहों से) जो इनके दरमियाँ हो जाते हैं जब तक की कोई कबीरा गुनाह ना करे
सही मुस्लिम, जिल्द1 , 550

✦ 11. अबू हुरैरा रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की अबू अल-क़ासिम (यानी रसूल-अल्लाह)  सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया ज़ूमा में एक घड़ी ऐसी आती है की जो मुसलमान भी उस वक़्त खड़ा होकर नमाज़ पढ़े और अल्लाह से कोई खैर माँगे तो अल्लाह सुबहानहु उसको ज़रूर देगा
सही बुखारी, जिल्द 6, 5294

✦ 12. जाबिर रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया ज़ूमा का दिन 12 घंटे का है जिसमे कोई मोमीन बंदा अल्लाह सुबहानहु से कुछ माँगे तो अल्लाह उसको ज़रूर अता फरमाते है , तुम लोग उसको असर के बाद आखरी वक़्त में तलाश करो
सुनन नसाई, जिल्द1,1392-सही

✦ 13. अनस बिन मलिक रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया ज़ूमा के दिन (दुआ क़ुबूल होने की) वो मुबारक घड़ी को असर और गुरुब ए आफताब (यानि मगरिब) के दरमियान तलाश करो
जामिया तिरमिज़ी, जिल्द 1, 471-सही

✦ 14. अब्दुल्लाह बिन अम्र रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह  सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया जिस मुसलमान की वफात ज़ूमा के दिन या ज़ूमा की रात को होती है उसको अल्लाह सुबहानहु क़ब्र के फितने से महफूज़  रखता है
जामिया तिर्मीज़ी, जिल्द 1, 1063-हसन

✦ 15. अब्दुल्लाह इब्न उमर रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम  ने फरमाया ज़ूमा में 3 तरह के लोग आते हैं, एक तो वो जो वहां आकर बेहूदा बात करे, उसका हिस्सा यही है (यानी उसको कुछ सवाब ना मिलेगा) और दूसरा वो है जो वहाँ आकर अल्लाह सुबहानहु से दुआ करे अगर अल्लाह चाहेगा तो उसकी दुआ क़ुबूल करेगा और चाहेगा तो नही करेगा, और तीसरे  वो है जो वहाँ आकर खामोशी से बैठ जाए ना लोगों की गर्दनें फाँद कर आगे बड़े और ना किसी को तकलीफ़ पहुचाए तो उसका ये अमल इस ज़ूमा से लेकर अगली ज़ूमा तक बल्कि और तीन दिन ज़ियादा तक के लिए गुनाहों का कफ़्फ़रा बन जाएगा, क्यूंकी अल्लाह सुबहानहु का इरशाद है की जो शख्स एक नेकी करता है उसको 10 गुना सवाब मिलेगा
सुनन अबू दाऊद, जिल्द 1 ,1101-हसन

✦ 16. जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की एक शख्स आया जब रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम  ज़ूमा का ख़ुतबा दे रहे थे , आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम  ने पूछा एह फ़लाह क्या तुमने नमाज़ पढ़ी उसने  कहा नही तो आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया उठो और 2 रकात नमाज़ अदा करो
सही बुखारी, जिल्द 1, 930

✦ 17. जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम  ने फरमाया की जब कोई ज़ूमा के दिन आए और इमाम ख़ुतबा के लिए बाहर आ गया हो तो भी 2 रकात पढ़ ले.
सही मुस्लिम, जिल्द 2, 2022

✦ 18. जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की सुलैक गत्फानी  रदी अल्लाहू अन्हु ज़ूमा के दिन मस्जिद में आए तब रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम मिंबर पर तशरीफ़ फरमा थे सुलैक गत्फानी  रदी अल्लाहू अन्हु  बैठ गये और नमाज़ ना पढ़ी तो आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने पूछा  , क्या तुमने 2 रकात नमाज़ पढ़ी तो उन्होने कहा नही फिर आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया उठो और 2 रकात नमाज़

अदा करो और मुख़्तसर (छोटी करके) पढ़ो फिर आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया जब तुम में से कोई शख्स ज़ूमा के दिन आए और इमाम ख़ुतबा दे रहा हो तो (भी) उसको 2 रकात (नमाज़) पढ़ना चाहिए और उसको मुख़्तसर कर देना  चाहिए
सही मुस्लिम, जिल्द 2, 2024

✦ 19. अबू हुरैरा रदी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सल-अल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया जब तुम में से कोई ज़ूमा की (फ़र्ज़) नमाज़ पढ़ चुके तो उसे चाहिए की उसके बाद चार रकात नमाज़ अदा करे
सुनन नसाई जिल्द 1, 1429-सही

✦ 20. तारिक इब्न शिहाब रदी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया ज़ूमा की नमाज़ जमात के साथ हर मुसलमान पर वाजिब है सिवाए चार के , गुलाम पर , औरत पर, बच्चे पर और बीमार पर ( ज़ूमा की नमाज़ वाजिब नही)
सुनन अबू दाऊद, जिल्द 1, 1055-सही
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Thursday, October 13, 2016

*क्या आपने कभी इन पश्चिमी philosophers को पढ़ा है:

*क्या आपने कभी इन पश्चिमी philosophers को पढ़ा है:*
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1. *लियो टॉल्स्टॉय (1828 -1910):*

"इस्लाम ही एक दिन दुनिया पर राज करेगी, क्योंकि इसी में ज्ञान और बुद्धि का संयोजन है"।

2. *हर्बर्ट वेल्स (1846 - 1946):*

" इस्लाम का प्रभावीकरण फिर होने तक अनगिनत कितनी पीढ़ियां अत्याचार सहेंगी और जीवन कट जाएगा । तभी एक दिन पूरी दुनिया उसकी ओर आकर्षित हो जाएगी, उसी दिन ही दिलशाद होंगे और उसी दिन दुनिया आबाद होगी । सलाम हो उस दिन को "।

3. *अल्बर्ट आइंस्टीन (1879 - 1955):*

"मैं समझता हूँ कि मुसलमानो ने अपनी बुद्धि और जागरूकता के माध्यम से वह किया जो यहूदी न कर सके । इस्लाम मे ही वह शक्ति है जिससे शांति स्थापित हो सकती है"।

4. *हस्टन स्मिथ (1919):*

"जो विश्वास हम पर है और इस हम से बेहतर कुछ भी दुनिया में है तो वो इस्लाम है । अगर हम अपना दिल और दिमाग इसके लिए खोलें तो उसमें हमारी ही भलाई होगी"।

5. *माइकल नोस्टरैडैमस (1503 - 1566):*

" इस्लाम ही यूरोप में शासक धर्म बन जाएगा बल्कि यूरोप का प्रसिद्ध शहर इस्लामिक स्टेट राजधानी बन जाएगा"।

6. *बर्टरेंड रसेल (1872 - 1970):*

"मैंने इस्लाम को पढ़ा और जान लिया कि यह सारी दुनिया और सारी मानवता का धर्म बनने के लिए है । इस्लाम  पूरे यूरोप में फैल जाएगा और यूरोप में इस्लाम  के बड़े विचारक सामने आएंगे । एक दिन ऐसा आएगा कि इस्लाम ही दुनिया की वास्तविक उत्तेजना होगा "।

7. *गोस्टा लोबोन (1841 - 1931):*

" इस्लाम ही सुलह और सुधार की बात करता है । सुधार ही के विश्वास की सराहना में ईसाइयों को आमंत्रित करता हूँ"।

8.  *बरनार्ड शा (1856 - 1950):*

"सारी दुनिया एक दिन इस्लाम धर्म स्वीकार कर लेगी । अगर यह वास्तविक नाम स्वीकार नहीं भी कर सकी तो रूपक नाम से ही स्वीकार कर लेगी। पश्चिम एक दिन इस्लाम स्वीकार कर लेगा और उसलम ही दुनिया में पढ़े लिखे लोगों का धर्म होगा "।

9. *जोहान गीथ (1749 - 1832):*

"हम सभी को अभी या बाद मे इस्लाम  धर्म स्वीकार करना ही होगा । यही असली धर्म है ।मुझे कोई मुसलमान कहे तो मुझे बुरा नहीं लगेगा, मैं यह सही बात को स्वीकार करता हूँ ।"
*Plz share to all ur links*

Wednesday, October 12, 2016

ोल ताशे से मुहर्रम को मनाने वाले

ڈهول تاشے سے محرم کو منانے والے
غم سے شہداء کی بڑی دهوم مچانے والے

ढोल ताशे से मुहर्रम को मनाने वाले
गम से शुहदा की बड़ी धूम मचाने वाले

تعزیہ اور سواری کے اٹهانے والے
باغ اور شیر  کو نچانے والے

ताज़िया और सवारी के उठाने वाले
बाग ए और शेर को नचाने वाले

چاند جب ماہ محرم کا نظر آتا ہے
کیا تیرے جسم میں شیطان اتر آتا ہے

चाँद जब माहे मुहर्रम का नज़र आता है
क्या तेरे जिस्म में शैतान उतर आता है

غم جنهیں ہوتا ہے وہ ڈهول بجاتے ہیں کہیں
دوسروں کی طرح تہوار مناتے ہیں کہیں

गम जिन्हें होता हे वह ढोल बजाते हैं कहीं
दूसरो की तरह तहवार मनाते हैं कहीं

وہ خرافات کا بازار لگاتے ہیں کہیں
ڈهول باجے سے بهی میت کو اٹهاتے ہیں کہیں

वो खुराफात का बाजार लगाते हैं कहीं
ढोल बाजे से भी मय्यत को उठाते हैं कहीं

کیا شریعت میں تمهارے اسے غم کہتے ہیں
غم یہی ہے تو خوشی اور کسے کہتے ہیں

क्या शरीअत में तुम्हारी इसे गम कहते हैं
गम यही हे तो ख़ुशी और किसे कहते हैं

تعزیہ داری کو تیمور نے ایجاد کیا
لایا ایران سے اور ہند میں آباد کیا

ताज़िया दारी को तैमूर ने ईजाद किया
लाया ईरान से और हिन्द में आबाद किया

غم منانے کا عجب ڈهنگ یہ ایجار کیا
روح اسلام کو تیمور نے برباد کیا

गम मनाने का अजब ढंग ये ईजाद किया
रूह ए इस्लाम को तैमूर ने बर्बाद किया

فعل تیمور ہے یہ قول پیمبر تو نہیں
غم کا یہ رنگ شریعت کے برابر تو نہیں

फाल तैमूर हे यह कौल ए पयम्बर तो नहीं
गम का यह रंग शरीअत के बराबर तो नही

خوب ہے ابن علی سے یہ محبت تیری
ساری دنیا سے نرالی ہے عقیدت تیری

खूब हे इब्न ए अली से यह मुहब्बत तेरी
सारी दुन्या से निराली है अक़ीदत तेरी

تعزیہ اور سواری ہے عبادت تیری
عشق بازی کی محرم میں ہے عادت تیری

ताज़िया और सवारी हे इबादत तेरी
इश्क़ बाज़ी की मुहर्रम में हे आदत तेरी

غم تجهے ہے تو ذرا اتنا ہی کر کے بتلا
ڈهول تاشے سے ذرا باپ کی میت کو اٹها

गम तुझे है तो ज़रा इतना ही कर के बतला
ढोल ताशे से ज़रा बाप की मय्यत को उठा