Monday, December 5, 2016

फिरकाबंदी का खात्मा और हक कि दावत



शुरु करता हु मैं अल्लाह के नाम से जो बड़ा महेरबान और बहुत रहेम वाला है.

 सब तारीफे अल्लाह के लिए है जो तमाम जहाँ का पालने वाला है, हम उसी की तारीफ़ करते है और उसी का शुक्र अदा करते है. अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक (पूजनीय) नहीं है, वह अकेला है और उसका कोई साझी और शरीक (भागीदार) नहीं है. मुहम्मद (स.अ.व.) अल्लाह के बंदे (गुलाम) और रसूल (पयगम्बर / संदेशवाहक) है.

 अल्लाह कि बेशुमार रहेमते और सलामती नाझिल जो उनके रसूल (स.अ.व.) पर और उनकी आल-औलाद और उनके साथियो पर.

 अम्मा बाद,

 फिरकाबंदी क्या है?

 फिरकाबंदी का मतलब है कि किसीकी सोच, राय, बात या आमाल कि बुनियाद पर सबसे अलग होकर अपना एक गिरोह या जमात बना लेना.

 आजके इस माहोल में अगर आप नजर करे तो आपको मुस्लिम उम्मह में बहोत सारे फिरके मिलेंगे. कोई अपने आपको सुन्नी कहता है, कोई हनफ़ी, हम्बली, मालिकी, शाफई, देवबंदी, बरेलवी, कादरियाह, चिश्तियाह, अहमदिया, जाफरियाह, वगैरह वगैरह. हर एक फिरका एक दूसरे से मुहं मोड़कर अपना अपना मझहब बना लिया है. जबके उनके मझहब के सिद्धांत और आमाल देखे तो वह एक दूसरे से बिलकुल अलग है फिरभी अपने आपको मुसलमान कहते है. हर एक ने अपने अपने इमाम, किताबें, मस्जिदे, मदरसे, और मुसल्ली (नमाजी) बाँट लिए है और यहाँ तक कि अपनी पहेचान के लिए पहनावेमें कुछ ना कुछ खास बातें रख ली है जिसकी बुनियाद पर वह फिरका लोगो से अलग पहेचान लिया जाए. बड़े हैरत कि बात यह है कि हर एक फिरका अपने आपको सिराते मुस्तकीम (सीधे रास्ते) पर जनता है और कहेता है. उनके पास जो इस्लामी सोच है उससे वह खुश है. इस बात को अल्लाहताला ने कुरआन में कुछ इस तरह बयान किया है, “जिन्हों ने अपने दीन के टुकडे टुकडे कर दिए और गिरोह (फिरको) में बंट गए, हर गिरोह (फिरका) उसीसे खुश है जो उसके पास है” (सुरह अर् रूम:३२) हर फिरका दूसरे को गुमराह मानता है और अपने आपको सीधे रह पर जानता है. येही बात यहूद और नसारा में भी थी जिसे अल्लाहताला ने कुरआन में बताया है, “यहूद ने कहा ‘नसारा किसी बुनियाद पर नहीं’ और नसारा ने कहा ‘यहूद किसी बुनियाद पर नहीं’ हालाकि वे दोनों अल्लाहताला कि किताब पढते है” (सुरह बकरह:११३)

 फिरकाबंदी कि वजह (सबब)
 मुस्लिम उम्महमें जो फिरकाबंदी पैदा हुई उसकी तहकिक अगर कि जाए तो यह बुनियादी वजह मिलती है कि हमने अल्लाहताला के कुरआन को और रसूल (स.अ.व.) के फरमान को छोड दिया है. इन दोनों चीजों को छोडकर हमने अपने अपने इमाम, आलिम, मौलवी कि बातों को अपना लिया है और उनके कॉल और हुक्मो को उस हद तक का दरज्जा दिया है कि उनकी तमाम बातो को सच समझ लिया है. आम मुसलमान ने कभी यह कोशिश नहीं कि के इन बातो को कुरआन और हदीस के मुकाबले में रखे या उसकी तहेकिक करे. अगर दूसरे अल्फाज में कहा जाए तो हमने अपने आलिमो को ‘रब’ बना लिया है. अल्लाहताला कुरआन में फरमाते है, “उन्होंने अपने आलिमो और दरवेशों (संतो) को ‘रब’ बना लिया है.(सुरह तौबा:३१) यह आयत का साफ़ मतलब होता है कि किसी शख्श को इज्जत में वोह मक़ाम देना के उसके हर कौल (शब्द) को आखरी कौल माना जाए तो वह उसकी इबादत करने के बराबर हुआ. क्योकि आखरी कौल तो सिर्फ अल्लाहताला का कौल होता है और उसी की इबादत की जाती है. जब अल्लाहताला कोई फैसला कर देता है और उसे अपने रसूल (स.अ.व.) के जरिये उम्मत में उतरता है तो उसमे तबदील (बदलने) करने और शरई हद कायम करने का किसी और को हक नहीं.

 अरब के अइम्मा इमाम अबू हनीफा (र.अ.), इमाम शाफई (र.अ.), इमाम मालिक (र.अ.) और इमाम इब्ने हम्बल (र.अ.) जिनकी ओर हम अपनी निस्बत करते है उन्होंने क्या इस्लाम को छोडकर अपना अलग मजहब बनाया था या बनाने का हुक्म दिया था? हरगिज नहीं बल्कि सभी इमामों का येही कौल था कि अगर हमारी बात कुरआन या हदीस कि बात से टकराये तो हमारी बातो को छोडकर कुरआन या हदीस कि बातों को सीने से लगा लेना. फिर हम उम्मत को क्या हुआ है कि हमें कुरआन कि आयत या सहीह हदीस मिलने के बावजूद सिर्फ अपनी जिद कि वजह से अपने इमामों और आलिमो कि बातों को अपनाये हुए है.

 फिरकाबंदी के नुक्शानात
 फिरकाबंदी का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि हम अल्लाहताला और उसके रसूल(स.अ.व.) से दूर हो जायेंगे. इस बात को कुरआन में कुछ इस तरह बयान किया है.

 “जिन लोगो ने अपने दीन के टुकडे टुकडे कर दिए और गिरोह (फिरकों) में बंट गए, (अय नबी) तुमको उनसे कुछ काम नहीं. उनका मामला बस अल्लाह के हवाले है. वही उन्हें बतलायेगा कि वे क्या कुछ करते थे.” (सुरह अल अनाम:१५९)

 तो कुरआन कि इस आयत से मालुम हुआ कि अगर हम फिरके बनायेंगे तो अल्लाहताला और उसके रसूल(स.अ.व.) से दूर होकर गुमराह हो जायेंगे और गुमराही का मतलब है हंमेशा के लिए जहन्नम.

 फिरकाबंदी कि वजह से हमारे अंदर हक(सच) को तलाश करने का जझबा(तमन्ना) खतम हो जाता है और हम अपने इमाम, पीर या आलिम की बातो को बिना कुरआन और हदीस कि दलाइल के बगैर हक(सच) मानने लगते है. फिर ना हम कुरआन समजने के लिए तैयार होते है और नाही हदीस समजकर उस पर अमल करेने के लिए.

 लोग फिरकाबंदी के घरों में अपने आप को बन्द करके अपने इमाम, पीर साहब या आलिम के कौल कि कुंडी लगा लेते है, फिर चाहे आप बाहर से उन्हें कितनी भी कुरआन कि आयत सुनाये या फरमाने रसूल(स.अ.व.) सुनाओ मगर वह उसको मानने के लिए तैयार नहीं होता और अपने बडो के कौल कि कुंडी खोलकर फिरकाबंदी के घर से बाहर निकलना ही नहीं चाहता.

 फिरकाबंदी की वजह से हम मुसलमान लोग आपस में एक दूसरे से नफ़रत करने लगते है और फिर शैतान अपनी चल चलकर हमें आपस में लड़ाता है. हालाकि हम मुसलमान एक उम्मत है और अल्लाहताला नेे हमें एक दीन “इस्लाम” दिया है जो बिलकुल सीधासादा दीन है जिसे कुरआन में कुछ इस तरह बयान किया है,

 “तुम इब्राहीम के दीन को अपनाओ जो हर एक से अलग होकर एक (अल्लाहताला) के हो गए थे और मुशरिको में से ना थे” (सुरह आले इमरान:९५) और दूसरी जगह अल्लाहताला फरमाते है,

 “इब्राहीम न यहूदी थे न नसरानी बल्के सीदे सादे मुसलमान थे और मुशरिक भी न थे.”(सुरह आले इमरान:६७)

 फिरकाबंदी का हल (उपाय)
 फिरकाबंदी का हल बताते हुए अल्लाहताला कुरआन में फरमाते है,

 “अय एहले किताब, आओ एक ऐसी बात कि ओर जो तुममे और हम में एक सामान है. वह यह कि हम अल्लाहताला के सिवा किसी और कि इबादत ना करे और ना उसके साथ किसी चीज को शरीक करे और ना हममें से कोई एक दूसरे को अल्लाहताला के सिवा किसी को रब बनाये. फिर यदि वोह इससे मुंह मोड ले तो कह दो गवाह रहो हम तो ‘मुस्लिम’ है.” (सुरह आले इमरान:६४)

 दूसरी जगह अल्लाहताला फरमाते है, “सब मिलकर अल्लाहताला कि रस्सी को मजबूती से पकडो और आपसमे फूंट पैदा न करो” (सुरह आले इमरान:१०३)

 अल्लाहताला के रसूल(स.अ.व.) ने भी हमें एक रहने को कहा है और उनकी बुनियादी बात भी बतलाते हुए फरमाया है कि, “मै तुम्हारे दरमियान दो चीजे छोड़े जा रहा हू अगर तुम उनपर अमल करोगे तो कभी गुमराह नहीं होंगे, वह दो चीजे है अल्लाह कि किताब (कुरआन) और मेरी सुन्नत यानी मेरा तरीका (हदीस)” (मोत्ता मालिक:२२५१, रिवायात अबू हुरैरह(रदी.)

 अल्लाहताला ने हमें सिर्फ दो लोगो के हुक्म मानने के लिए कहा है, जिसे कुरआन में बताया है कि,

 “अल्लाहताला कि इताअत करो और उसके रसूल (स.अ.व.) कि इताअत करो ताकि तुम पर रहम किया जाए.”(सुरह आले इमरान:१३२)

 दूसरी जगह फरमाते है, “अय ईमानवालो, अल्लाहताला का हुक्म मानो और रसूल(स.अ.व.) का हुक्म मानो और तुममे जो अधिकारी (सत्ताधीश) है उनकी बात मानो. फिर अगर तुममे किसी बात पर इख्तिलाफ (मतभेद) हो जाए तो उसे अल्लाहताला और रसूल(स.अ.व.) कि ओर लौटा दो अगर तुम अल्लाहताला और आखिरत पर ईमान (यकीन) रखते हो. यह तरीका सर्वश्रेष्ठ है और इसका अंजाम बहेतर है (सुरह निशा:५९)

 कुरआन कि यह आयत हमारे बिच के गिरोहबंदी के हल का तरीका बयान करती है.

 फिरकाबंदी का अंजाम
 अल्लाहताला के कुरआन कि यह आयतें और रसूल(स.अ.व.) के फरमान के बावजूद अगर हम फिरकाबंदी पर कायम रहे तो अल्लाहताला कुरआन में लोगो को डराते हुए कहते है,

 “उस वक़्त को ध्यान(याद) करो जब कि वे लोगो (पीर/इमाम/आलिमो) के पीछे चले थे अपने मुरीदो से अलग हो जायेंगे और अजाब उनके सामने होगा और उनके आपस के सारे नाते टूट जायेंगे. (सुरह अल बकरह:१६६)

 याद रखो ! क़यामत के दीन कोई किसी के काम न आएगा. सिर्फ जिद, अहम् और माहौल कि वजह से हक बात का इनकार ना करो और तुम खूब जानते हो कि हक बात सिर्फ कुरान और हदीस है.

 आज यह माहोल है कि अगर मैं कोई फिरके में सिर्फ इसलिए हू कि मैंने अपने बाप-दादा को येही करते और कहते देखा है तो जान लो अल्लाहताला कुरआन में फरमाते है,

 “जब उनसे कहा जाता है कि अल्लाहताला ने जो कुछ उतारा (कुरआन और हदीस) है उसके मुताबिक चलो, तो कहेतें है, नहीं! हमतो उसी के मुताबिक चलेंगे जिस पर हमने बाप-दादा को पाया है, क्या इस हाल में भी के उनके बाप-दादा ना-समज और गुमराह हो? (सुरह अल बकरह:१७०)

 और दूसरी जगह अल्लाहताला फरमाते है, “जब उनसे कहा जाता है कि उस चीज कि तरफ आओ जो अल्लाहताला ने उतारी है (कुरआन) और रसूल (स.अ.व.) कि ओर (हदीस) तो वह कहेते है ‘हमारे लिए वोही काफी है जिस पर हमने अपने बाप दादा को पाया है. क्या यदि उनके बाप दादा कुछ भी ना जानते हो और ना रास्ते पर हो तब भी?” (सुरह अल माइदा:१०४)

 हमारी दावत
 उम्मत के हर फिरके को हमारी दावत है कि हम अपने बनाये हुए मजहब को छोडकर अल्लाहताला के उस दीन कि ओर लौट आए जिस दीन के सिद्धांत और नियम खालिस(सम्पूर्ण) है. जिसे कुरआन और हदीस कि शक्ल में महेफुझ किया गया है और हर फिरका उसे हक जनता है. इसलिए हम अपने आमाल सिर्फ और सिर्फ कुरआन और सुन्नह के मुताबिक बनाये. हर एक फिरका अपना अपना लेबल छोडकर अपने आपको सिर्फ “मुसलमान” कहे और हर एक फिरका अपना अपना बनाया हुआ मजहब छोडकर अल्लाहताला कॉ दीन जो कि इस्लाम है उसे अपनाए.

 दिन में पांच बार हम अल्लाहताला से हर नमाज में दुआ करते है कि “हमें सीधे रास्ते पर चला” (सुरह फातिहा:५) तो जब अल्लाहताला ने सीधा रास्ता दिखाया है उससे हटकर हम क्यों फिरकाबंदी करके अपने आपको गुमराह कर रहे है और सीधे रास्ते से दूर हो रहे है.

 अल्लाहताला कुरआन में फरमाते है, “उस चीज (कुरआन) को मजबूती से पकडे रहो जो तुम्हारी ओर वही कि जाती है, बेशक तुम सीधे रास्ते पर हो.” (सुरह अज जुखरुफ़:४३)

 और दूसरी जगह, “बेशक तुम रसूलों में से हो, निहायत सीधे रास्ते पर.” (सुरह यासीन:३-४)

 जब अल्लाहताला ने अपने रसूल (स.अ.व.) को सीधे रास्ते पर होने कि गवाही दी है तो हमें चाहिए कि हम भी अपने आपको रसूल(स.अ.व.) के हुक्मों और आमालो के मुताबिक चलकर सीधे रास्ते पर रहने कि कोशिश करनी चाहिए. हमारे लिए यही बेहतर है, दुनिया और आखिरत में कामयाब होने के लिए. कुरआन को समजो जिसे अल्लाहताला ने आसान किया हुआ है. “हमने कुरआन को समजने के लिए आसान किया है, तो है कोई समजनेवाला?” (सुरह अल कमर:१७,२२,३२,४०) और अल्लाहताला के रसूल(स.अ.व.) के फरमानो को मानो जो हदीस कि शक्ल में है. इसे बुखारी शरीफ, मुस्लिम शरीफ, अबू दावूद शरीफ, तिरमिझी शरीफ, इब्ने माझा शरीफ कहेते है. अल्लाहताला ने हमें दो हाथ दिए और रसूल(स.अ.व.) ने उसी दो हाथों में दो चीजे (कुरआन और हदीस) दी है. अल्लाहताला ने न हमें तीसरा हाथ दिया और नाही रसूल(स.अ.व.) ने हमें तीसरी चीज दी है.

 लौट आओ कुरआन और हदीस कि ओर अगर कामयाब होना चाहते हो.
 तोड़ दो वोह तमाम बंदिशे जो हमें एक दूसरे से अलग करती है.
 छोड़ दीजिए वोह तमाम बाते और अमल जो अल्लाहताला के कुरआन और रसूल(स.अ.व.) के फरमान के खिलाफ हो.
 छोड़ दीजिए अपने-अपने आलिमों और मौलवियों कि किताबें और पकड़ लीजिए अल्लाहताला कि किताब (कुरआन)
 हम इसी बुनियाद पर एक उम्माह बन सकते है और हमारे बिच मोहब्बत कायम हो सकती है.
 अल्लाहताला से दुआ करते है कि हमें इस उम्मत के बिच से फिरकाबंदी खत्म करने कि समज दे और दिने ‘इस्लाम’ पर हमें कायम रखे…. आमीन.