नमाज़ की दावत
Sunday, March 26, 2017
Saturday, March 18, 2017
मुसलमान बदलाव लाए
मुसलमान बदलाव लाएं:-
मुसलमानों को अब कुछ बदलाव करना ही पड़ेंगे, सामूहिक:-
1. मस्जिदों को सभी के लिए आम करदे, जो बंदा आना चाहे आये, जिसे दुआ मांगना हो ख़ुदा से मांगे। सभी धर्म के लोगों के आने का इंतज़ाम हो। उन्हें जो सवाल पूछना हो इस्लाम या ख़ुदा या रसूल के बारे में उनके जवाब भी कोई समझदार इंसान दे।
2. मस्जिदों को बस नमाज़ पढ़ने की ही जगह न बनाये। वहाँ ग़रीबो के खाने का इंतज़ाम हो, डिप्रेशन में उलझे लोगो की कॉउन्सेल्लिंग हो, उनके पारिवारिक मसलो को सुलझाने का इंतेज़ाम हो, मदद मांगने वालो की मदद की जाने का इंतेज़ाम हो। जब दरगाहों पर लंगर चल सकता हैं तो मस्जिदों में क्यों नहीं, और दान करने में मुस्लिमो का कहा कोई मुकाबला है, हम आगे आएंगे तो सब बदलेगा।
3.मस्जिदों में अगर कोई दूसरे मज़हब के भाई बहन आये तो उनके स्वागत या इस्तक़बाल का इंतज़ाम हो।उन्हें बिना खाना खिलाये हरगिज़ न भेजें।
4.मस्जिदों में एक शानदार लाइब्रेरी हो। जहाँ पर इस्लाम की हर किताब के साथ-साथ दूसरे मज़हब की किताबें भी पढ़ने को उपलब्ध हो। ई-लाइब्रेरी भी ज़रूर हो। बहुत होगये मार्बल, झूमर, ऐ.सी. और कालिंदो पर खर्च अब उसे बंद करके कुछ सही जगह पैसा लगाये।
5.समाज या कौम के पढ़े लिखे लोगो का इस्तेमाल करे। डॉक्टरों से फ्री इलाज़ के लिए कहे मस्ज़िद में ही कही कोई जगह देकर, वकील, काउंसलर, टीचर आदि को भी मस्जिद में अपना वक्त देने को बोले और यह सुविधा हर धर्म वाले के लिए बिलकुल मुफ्त हो।इसके लिए लगभग सभी लोग तैयार होजाएंगे, जब दुनिया के सबसे बड़े और सबसे व्यस्त सर्जन डॉ मुहम्मद सुलेमान भी मुफ्त कंसल्टेशन के लिए तैयार रहते हैं, तो आम डॉ या काउंसलर क्यों नही होंगे? ज़रूरत है बस उन्हें मैनेज करने की।
6.इमाम की तनख्वा ज्यादा रखे ताकि टैलेंटेड लोग आये और समाज को दिशा दें।
7.मदरसों से छोटे छोटे कोर्स भी शुरू करें कुछ कॉररेस्पोंडेंसे से भी हो। किसी अन्य धर्म का व्यक्ति भी आकर कुछ पढ़ना चाहे तो उसका भी इंतेज़ाम हो।
8.ट्रस्ट के शानदार हॉस्पिटल और स्कूल खोले जहाँ सभी को ईमानदारी और बेहतरीन किस्म का इलाज़ और पढ़ने का मौका मिले, बहुत रियायती दर पर। यह भी हर मज़हब वालो के लिये हो, बिलकुल बराबर।
इनमे से एक भी सुझाव नया नहीं है, सभी काम 1400 साल पहले मदीना में होते थे...हमने उनको छोड़ा और हम बर्बादी की तरफ बढ़ते चले गए... और जा रहे हैं।रुके, सोचे और फैसला ले।
گروپ میں موجود تمام معزز قارئین کرام علماء کرام آپ سب کی اس ☝پوسٹ اور پیغام کے بارے میں کیا رائے ہے اور ہاں میں ہے تو کون کتنا اس تحریک کو کتنا اہمیت دے رہا ہے یا دیگا؟ ؟؟؟؟؟؟
(
سائل مسئول سب کے لئے یکساں )
Monday, March 13, 2017
अब फ़क़त शोर मचाने से नहीं कुछ होगा
Saturday, March 11, 2017
इल्जाम लगाना छोड़ दो
*झूठी गवाही से बचो*
*इल्जाम लगाना छोड़ दो*
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*झूठी गवाही देना और किसी पर इल्ज़ाम लगाना बहुत ही बुरा काम है,*
*सरकारे मदीना* صلی اللہ علیہ وسلم
के इर्शादात पढीये, और अपनी आख़िरत की फ़िक्र करते हुये इस कबीरा गुनाह से खुद बचें और दूसरों को बचायें,
*झूठे गवाह के क़दम हटने भीन पायेंगे कि अल्लाह तआला उसके लिये जहन्नम वाजिब कर देगा*
📕इब्ने माजा, हदीस नं, 2373
*जिस ने किसी मुसलमान को ज़लील करने की ग़र्ज़ से उस पर इल्ज़ाम लगाया तो अल्लाह तआला जहन्नम के पुल पर उसे रोक लेगा, यहां तक कि अपने कहने के मुताबिक़ वो अज़ाब पा ले*
📕अबू दाऊद, हदीस नं 4883
*जो किसी मुसलमान पर ऐसी चीज़ का इल्ज़ाम लगाये जिस के बारे में वो ख़ुद भी नहीं जानता हो, तो अल्लाह तआला उसे* (जहन्नमियों के ख़ून व पीप जमा होने की जगह)
*"रदग़तुल ख़बाल"* *में उस वक़्त तक रखेगा जब तक कि अपने इल्ज़ाम के मुताबिक़ अज़ाब पा न ले*
📕मुसन्निफ अब्दुर्रज़्ज़ाक़, हदीस नं 20905
Wednesday, March 8, 2017
मौत के आगोश में जब थक के सो जाती है माँ
तब कहीं जाकर थोड़ा सुकूं पाती है माँ।
फिक्र में बच्चों की कुछ इस तरह घुल जाती है माँ
नौ जवाँ होते हुए बूढ़ी नजर आती है माँ।।
रूह के रिश्तों की ये गहराईयां तो देखिए
चोट लगती है हमारे अोर चिल्लाती है माँ।
जानें कितनी बरस सी रातों में ऐसा भी हुआ
बच्चा तो छाती पे है गीले में सो जाती है माँ।।
जब खिलौनों को मचलता हैं कोई गुरबत का फूल
आसूंओ के साज पर बच्चों को बहलाती है माँ।
फिक्र के श्मशान में आखिर चिंताओं की तरह
जैसे सूखी लकड़ियां इस तरह जल जाती है माँ।।
अपने आँचल से गुलाबी आसूंओ को पोंछकर
देर तक गुरबत पर अपनी अश्क बरसाती है माँ।
सामने बच्चों के खुश रहती है हर एक हाल में
रात को छिप-छिपकर लेकिन अश्क बरसाती है माँ।।
कब जरूरत हो मेरे बच्चों को,इतना सोचकर
जागती रहती है आखें अोर सो जाती है माँ।
माँगती ही कुछ नहीं अपने लिए अल्लाह से
अपने बच्चों के लिए दामन को फैलाती है माँ।
अगर जवाँ बेटी हो घर में अोर कोई रिश्ता ना हो
एक नए अहसास की सूली पें चढ़ जाती है माँ।
हर इबादत हर मोहब्बत में बसी है एक गरज
बे गरज बे लोस हर खिदमत कर जाती है माँ।।
जिन्दगी के इस सफर में गरदिशो की धूप में
जब कोई साया नहीं मिलता तो याद आती है माँ।
प्यार कहते हैं किसे ओर ममता क्या चीज है
कोई उन बच्चों से पूछो जिनकी मर जाती है माँ।।
देर हो जाती है अक्सर घर आने में जब हमें
रेत पर मछली हो जैसे एेसे घबराती है माँ।
मरते दम बच्चा ना आ पाए अगर प्रदेश से
अपनी दोनों पुतलियाँ चोखट पे रख जाती है माँ।।
बाद मर जाने के फिर बेटे की सेवा के लिए
भेस बेटी का बदल कर घर में आ जाती है माँ।
चाहे हम खुशियों में माँ को भूल जाएं दोस्तों
जब मुसीबत सर पे आती है तो याद आती है माँ।।
दूर हो जाती है सारी उम्र की उस दम थकान
ब्याह कर बेटे को जब घर में बहु लाती है माँ।
छीन लेती है वही अक्सर सुकूने जिन्दगी
प्यार से दुल्हन 👰 बनाकर जिसको घर लाती है माँ।।
फेर लेते हैं नजर जिस वक्त बेटे अोर बहु
अजनबी अपने ही घर में बन जाती है माँ।
जब्त तो देखो कि इतनी बेरूखी के बावजूद न
बद्दुआ देती है हरगिज अोर न पछताती है माँ।।
बेटा कितना ही बुरा हो पर पडोसन के सामने
रोककर जज्बात को बेटे के गुण गाती हैं माँ।
शादियां करके बच्चे 🚸 जा बसे प्रदेश में
दिल खतों अोर तस्वीरें से बहलाती है माँ।।
अपने सीने पर रखे हैं काएनाते जिन्दगी
ये जमी इस वास्ते ऐ दोस्त कहलाती है माँ।
शुक्रिया हो ही नहीं सकता कभी इसका अदा
मरते-मरते भी दुआ जीने की दे जाती है माँ।।