Wednesday, March 8, 2017

मौत के आगोश में जब थक के सो जाती है माँ

मौत के आगोश में जब थक के सो जाती है माँ
तब कहीं जाकर थोड़ा सुकूं पाती है माँ।


फिक्र में बच्चों की कुछ इस तरह घुल जाती है माँ
नौ जवाँ होते हुए बूढ़ी नजर आती है माँ।।


रूह के रिश्तों की ये गहराईयां तो देखिए
चोट लगती है हमारे अोर चिल्लाती है माँ।


जानें कितनी बरस सी रातों में ऐसा भी हुआ
बच्चा तो छाती पे है गीले में सो जाती है माँ।।


जब खिलौनों को मचलता हैं कोई गुरबत का फूल
आसूंओ के साज पर बच्चों को बहलाती है माँ।


फिक्र के श्मशान में आखिर चिंताओं की तरह
जैसे सूखी लकड़ियां इस तरह जल जाती है माँ।।


अपने आँचल से गुलाबी आसूंओ को पोंछकर
देर तक गुरबत पर अपनी अश्क बरसाती है माँ।


सामने बच्चों के खुश रहती है हर एक हाल में
रात को छिप-छिपकर लेकिन अश्क बरसाती है माँ।।


कब जरूरत हो मेरे बच्चों को,इतना सोचकर
जागती रहती है आखें अोर सो जाती है माँ।


माँगती ही कुछ नहीं अपने लिए अल्लाह से
अपने बच्चों के लिए दामन को फैलाती है माँ।


अगर जवाँ बेटी हो घर में अोर कोई रिश्ता ना हो
एक नए अहसास की सूली पें चढ़ जाती है माँ।


हर इबादत हर मोहब्बत में बसी है एक गरज
बे गरज बे लोस हर खिदमत कर जाती है माँ।।


जिन्दगी के इस सफर में गरदिशो की धूप में
जब कोई साया नहीं मिलता तो याद आती है माँ।


प्यार कहते हैं किसे ओर ममता क्या चीज है
कोई उन बच्चों से पूछो जिनकी मर जाती है माँ।।


देर हो जाती है अक्सर घर आने में जब हमें
रेत पर मछली हो जैसे एेसे घबराती है माँ।


मरते दम बच्चा ना आ पाए अगर प्रदेश से
अपनी दोनों पुतलियाँ चोखट पे रख जाती है माँ।।


बाद मर जाने के फिर बेटे की सेवा के लिए
भेस बेटी का बदल कर घर में आ जाती है माँ।


चाहे हम खुशियों में माँ को भूल जाएं दोस्तों
जब मुसीबत सर पे आती है तो याद आती है माँ।।


दूर हो जाती है सारी उम्र की उस दम थकान
ब्याह कर बेटे को जब घर में बहु लाती है माँ।


छीन लेती है वही अक्सर सुकूने जिन्दगी
प्यार से दुल्हन 👰 बनाकर जिसको घर लाती है माँ।।


फेर लेते हैं नजर जिस वक्त बेटे अोर बहु
अजनबी अपने ही घर में बन जाती है माँ।


जब्त तो देखो कि इतनी बेरूखी के बावजूद न
बद्दुआ देती है हरगिज अोर न पछताती है माँ।।


बेटा कितना ही बुरा हो पर पडोसन के सामने
रोककर जज्बात को बेटे के गुण गाती हैं माँ।


शादियां करके बच्चे 🚸 जा बसे प्रदेश में
दिल खतों अोर तस्वीरें से बहलाती है माँ।।


अपने सीने पर रखे हैं काएनाते जिन्दगी
ये जमी इस वास्ते ऐ दोस्त कहलाती है माँ।


शुक्रिया हो ही नहीं सकता कभी इसका अदा
मरते-मरते भी दुआ जीने की दे जाती है माँ।।




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