Saturday, April 15, 2017

औरत खुदा का दिया हुआ एक नायाब तोहफा है !!

📶औरत खुदा का दिया हुआ एक नायाब तोहफा है !!
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प्रेगनेन्ट औरत की 2 रकात नमाज आम औरत की 70 रकात नमाज से बढ़कर हे !!
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शौहर परेशान घर आए ओर बीवी उसे तसल्ली दे तो उसे जिहाद का सवाब मिलता है!।
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जो औरत अपने बच्चे के रोने की वजह से सो ना सकी उसे 70 गुलाम आजाद करने का सवाब मिलता हे !।
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शौहर और बीवी एक दूसरे को मोहब्बत की नजर से देखेँ तो अल्लाह उन्हे मोहब्बत की नजर से देखता है।।
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जो औरत अपने शौहर को अल्लाह के रास्ते मेँ भेजे वो जन्नत मेँ अपने शौहर से 500 साल पहले जाएगी ।।
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जो औरत आटा गुंदते वक़्त बिस्मिल्लाह पढ़े तो उसके रिज्क मेँ बरकत डाल दी जाती हे !!
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जो औरत गैर मर्द को देखती है  अल्लाह उसपर लानत भेजता हे !!
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जब औरत अपने शौहर के बिना कहे उनके पेर दबाती हे तो उसे 70 तोला सोना सदका करने का सवाब मिलता हे !!
☝जो पाक दामन औरत नमाज रोजे की पाबंदी करे और जो शौहर की खिदमत करे उसके लिए जन्नत के 8 दरवाजे खोल दिए जाते है।
☝औरत के एक बच्चे के पैदा करने पर  75 साल की नमाज का सवाब और हर एक दर्द पर 1 हज का सवाब हे ।
☝बारीक लिबास पहनने वाली और गैर मर्द से मिलने वाली औरत कभी जन्नत मेँ दाखिल नहीँ होगी ।
👉 👉जल्दी करो 
(1) मेहमान को खाना खिलाने में
(2) मैय्यत को दफनाने मे
(3) बालिग लड़कियो का निकाह कराने म
(4) कर्ज अदा करने में
(5) गुनाह से तौबा करने में !
"अस्ताग-फिरुल्लाहा रब्बी मिन-कुल्ली ज़न्बिउन वातुबू इलैही"
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आज आप यह मेसेज अगर किसी 1 को भी शेयर करदें तो आप सोच भी नही सकते कितने लोग "अल्लाह" से तौबा कर लेंगे इंशा अल्लाह
शेयर करना न भूलें.....

Monday, April 10, 2017

गुफ्तगू के उसुल व आदाब और अहकाम

गुफ्तगू के उसुल व आदाब और अहकाम


फुजुल_बात_चीत_की_मुमानियत

♥फुजुल बातों के बजाए अल्लाह के जिक्र की तरफ माइल रहना चाहिये क्योंकी बेहतरी इसी मे है, हजरत इमाम गजाली ने चार वजहों की बिना पर फुजुल बातों से बचने कि तालीम दी हैं,...

•1)-पहली बात उन्होंने ये ब्यान फरमाई है की फुजुल बात किरामन कातिबीन को लिखने पड़ती है, इसलिए इंसान को फरिश्तो से शर्म व हया करते हुए सोचना चाहिये की इन्हें फूजुल लिखने की तकलीफ न दें,..
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•2)-दुसरी वजह ये है की  ये बात अच्छी नही की बेकार और बेहुदा बातों से भरा हुआ आमालनामा  अपने रब के हुजुर पेश हो, इसलिए फुजुल बातों से दुर ही रहना अच्छा है,

•3)-तीसरी वजह ये है की बन्दे को क्यामत के रोज कहा जायेगा की अपना आमालनामा तमाम लोगो को खुद पढ़कर सुनाये, उस वक्त हश्र की खौफनाक सख्तियां उसके सामने होगी, इंसान प्यास की तकलीफ से मर रहा होगा, जिस्म पर कपड़ा नही होगा, भुख से कमर टुट रही होगी, जन्नत मे दाखिल होने से रोक दिया जायेगा, और हर किस्म की राहत उसपर बन्द कर दी गयी होगी, ऐसे हालत मे अपने ऐसे आमलनामे को पढ़ना जो फुजुल और बेहुदा गुफ्तगू से पुरा हो, किस कद्र तकलीफ दे चीज होगी, इसलिए चाहीये की जबान से सिवाए अच्छी बात के कुछ न निकाले,...

•4)-चौथी वजह ये है की बंदे को फुजुल और गैर जरुरी बातों पर मलामत की जायेगी और शर्म दिलाई जाएगी और बंदे के पास इसका कोई जवाब नही होगा, और अल्लाह तआला के सामने शर्म व नदामत की वजह से इंसान पानी पानी हो जायेगा

Friday, April 7, 2017

हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.)

हिन्दू/मस्लिम सभी लौग इस पर गौर करें..

मैं बात कर रहा हूँ इस्लाम के आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) की.

👍आप (स.अ.व.) ने औरतों के हक़ में उस वक़्त आवाज़ उठाई जिस दौर में बेटियों को जिंदा दफना दिया जाता था और विधवाओं को जीने तक का अधिकार न था.

👍हाँ ये वही मुहम्मद (स.अ.व.) हैं जिन्होंने एक गरीब नीग्रो बिलाल (र.अ.) को अपने गले से लगाया, अपने कंधों पर बैठाया, और इस्लाम का पहला आलिम मुक़र्रर किया.

👍वही मुहम्मद (स.अ.व.) जिन्होंने कहा की मज़दूर का मेहनताना उसका पसीना सूखने से पहले अदा करो, मज़दूर पर उसकी ताक़त से ज़्यादा बोझ न डालो, यहाँ तक की काम में मज़दूर का हाथ बटाओ.

👍वही मुहम्मद (स.अ.व.) जिन्होंने कहा की वो इंसान मुसलमान नहीं हो सकता जिसका पड़ोसी भूखा सोये, चाहे वो किसी भी मज़हब का हो.

👍वही मुहम्मद (स.अ.व.)
जिन्होंने कहा की अगर किसी ग़ैर मुस्लिम पर किसी ने ज़ुल्म किया तो अल्लाह की अदालत में वो खुद उस ग़ैर मुस्लिम की वक़ालत करेंगे.

👍वही मुहम्मद (स.अ.व.) जिन्होंने अपने ऊपर कूड़ा फेंकने वाली बुज़ुर्ग औरत का जवाब हमेशा मुस्कुरा कर दिया और उसके बीमार हो जाने पर ख़ुद खैरियत पूछने जाते हैं.

👍हाँ वही मुहम्मद (स.अ.व.) जिन्होंने कहा की दूसरे मज़हब का मज़ाक न बनाओ.

👍वही मुहम्मद (स.अ.व.)
जिन्होंने जंग के भी आदाब
तय किये की सिर्फ अपने बचाव में ही हथियार उठाओ.
बच्चे, बूढों और औरतों पर हमला न करो बल्कि पहले
उन्हें किसी महफूज़ जगह पहुँचा दो.  यहाँ तक की पेड़ पौधों को भी नुकसान ना पहुचाने की हिदायत दी.

उसी अज़ीमुश्शान शख्सिअत के बारे में लिखते लिखते कलम थक जायगी मगर उसकी शान कभी कम न होगी.  उन पर हमारी जान कुर्बान.

सभी धर्म के भाइयों को बताना चाहुंगा कि अगर कोई इन्सान गलती करता हे तो वो इन्सान बुरा होता है उसका धर्म/मज़हब नही.

21 वीं सदी मे बहुत ऐसे लोग हैं जो दुनिया मे इतना मग्न हो गये है कि जिनको खुद इस्लाम की नोलैज नही हे तो बो बच्चो को क्या इस्लाम के बारे मै बताऐंगे.

याद रखो... इस्लाम 100% पाक ओर साफ मज़हब हे.  किसी के कहने सुनने पर इसे बुरा ना कहो और अब भी अगर आपके दिमाग मे इस्लाम को लेकर कोई गलतफैमी है तो आप खुद मुहम्मद (स.अ.व.) की जीवनी (लाइफ हिस्ट्री)
पड़कर देखें... आपको जर्रा (पौइंट) बराबर भी गलती नजर नही आयेगी..!!!
अगर कोई मुस्लिम गलती/बत्तमीजी करता दिखे तो आप उससे सिर्फ इतना बौलना की क्या नबी मुहम्मद (स.अ.व.) ने आपको यही सिखाया है? तुमको नबी का ज़रा भी डर नहीं.?

सच्चा मुसलमान होगा तो शर्म से पानी पानी होकर तौबा कर लेगा..!!!!

प्लीज आपसे रिक्वेस्ट है कि इस मेसेज को फौरबर्ड कर इस्लाम के लिये जो लोगो के दिल-औ-दिमाग मे नाइत्तिफाख़ी/बुराई हे उसे दूर करने मे हमारी मदद करें...

अगर आप ईमान वाले हैं तो प्लीज दोस्तों शेयर ज़रूर करें ताकि हर मुस्लिम हर गैर मुस्लिम के पास ये सन्देश पहुंचे -

फ़िरकों में बांटने की राजनीति

वाह रे नासमझ मुसलमान! क्या ईमान पाया है, चन्द ज़ाहिल आलिमों के चक्कर में अल्लाह का कलाम (क़ुरान ए पाक) को जाने  अनजाने में मानने से इन्कार करना शुरू कर दिए...।

जी हाँ, जहाँ तक दुनिया जानती है कुछ जाहील आलिम बड़े शान से उस हदीस के मफ़हूम जिससे रिवायत है "मुसलमानों के 73 फ़िरके होंगे" को फेमस कर अपने फ़िरके की दुकान चमका रहे हैं...।

लेकिन क्या ऊनोने कभी क़ुरान की दलील इन आयतों पर दी है?

"सब मिल कर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थाम लो और फिर्क़ों में मत बटो...।"
(सुर: आले इमरान-103)

"तुम उन लोगो की तरह न हो जाना जो फिरकों में बंट गए और खुली-खुली वाज़ेह हिदायात पाने के बाद इख़्तेलाफ़ में पड़ गए, इन्ही लोगों के लिए बड़ा अज़ाब है...।"
(सुर:आले इमरान -105)

"जिन लोगों ने अपने दीन को टुकड़े टुकड़े कर लिया और गिरोह-गिरोह बन गए, आपका (यानि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का) इनसे कोई ताल्लुक नहीं, इनका मामला अल्लाह के हवाले है, वही इन्हें बताएगा की इन्होंने क्या कुछ किया है...।"
(सुर: अनआम-159)

"फिर इन्होंने खुद ही अपने दीन के टुकड़े-टुकड़े कर लिए, हर गिरोह जो कुछ इसके पास है इसी में मगन है...।"
(सुर: मोमिनून -53)

""तुम्हारे दरमियान जिस मामले में भी इख़्तेलाफ़ हो उसका फैसला करना अल्लाह का काम है..."
(सुर: शूरा -10)

"और जब कोई एहतराम के साथ तुम्हें सलाम करे तो उसे बेहतर तरीके के साथ जवाब दो या कम अज़ कम उसी तरह (जितना उसने तुम्हें सलाम किया) अल्लाह हर चीज़ का हिसाब लेने वाला है...।
(सुर: निसा -86)

"अल्लाह ने पहले भी तुम्हारा नाम मुस्लिम रखा था और इस (क़ुरआन) में भी (तुम्हारा यही नाम है) ताकि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तुम पर गवाह हों...।"
(सुर: हज -78)

"बेशक सारे मुसलमान भाई भाई हैं, अपने भाइयों में सुलह व मिलाप करा दिया करो और अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम पर रहम किया जाये...।"
(सुर: हुजरात -10)

और जिस हदीस के मफ़हूम को इतनी मेहनत से नफ़रत फ़ैलाने में इस्तमाल करते हैं क्या कभी उस मफ़हूम को पूरा पढ़ के सुनाया इन ढोंगी मौलवीयों ने?

जो पुरी तरह है "मेरी उम्मत के 73 फ़िरके होंगे, पर तुम उन फ़िरकों में मत बंट जाना" और सिर्फ़ पहली लाईन को पकड़ के फ़िरकों में बांटने की ठेकेदारी कर रहे चन्द उलेमाओं ने यह भी नहीं बताया की क़ुरान की एक भी बात को न मानना कुफ्र है...।

तो ज़रा सोचिये और बताईये फ़िरकों के नाम पर लड़ने वाले लोग ऊपर दी गई आयतों को कितना मानते हैं ????

मैं इतना बड़ा आलिम तो नहीं हूँ लेकिन अल्हमदुलिल्लाह मैं क़ुरान की इन आयतों के हवाले से कहता हूँ मैं मुसलमान हूँ और मेरा कोई फ़िरका नहीं है...।

अब आप सोंचे आपको फ़िरकों में बंट के क़ुरान की नाफ़रमानी करनी है या उन कठमुल्लों का #बायकाट करना है जो फ़िरकों में बांटने की राजनीति करते हैं...।