Tuesday, October 10, 2017

आखिर यह भी तो नही रहेगा

*""*

*🔵 एक फकीर अरब मे हज के लिए पैदल निकला। रात हो जाने पर एक गांव मे जाफ़र नामक व्यक्ति के दरवाजे पर रूका। जाफ़र ने फकीर की खूब सेवा किया। दूसरे दिन जाफ़र ने बहुत सारे उपहार दे कर बिदा किया। फकीर ने दुआ किया -"खुदा करे तू दिनों दिन बढता ही रहे।"*

*🔴 सुन कर जाफ़र हंस पड़ा और कहा -"अरे फकीर! जो है यह भी नहीं रहने वाला है"। यह सुनकर फकीर चला गया ।*

*🔵 दो वर्ष बाद फकीर फिर जाफ़र के घर गया और देखा कि जाफ़र का सारा वैभव समाप्त हो गया है। पता चला कि जाफ़र अब बगल के गांव में एक जमींदार के वहां नौकरी करता है। फकीर जाफ़र से मिलने गया। जाफ़र ने अभाव में भी फकीर का स्वागत किया। झोपड़ी मे फटी चटाई पर बिठाया ।खाने के लिए सूखी रोटी दिया।*

*🔴 दूसरे दिन जाते समय फकीर की आखों मे आंसू थे। फकीर कहने लगा अल्लाह ये तूने क्या किया?*

*🔵 जाफ़र पुनः हंस पड़ा  और बोला -"फकीर तू क्यों दुखी हो रहा है? महापुरुषों ने कहा है -"खुदा  इन्सान को जिस हाल मे रखे  खुदा को धन्यवाद दे कर खुश रहना चाहिए।समय सदा बदलता रहता है और सुनो यह भी नहीं रहने वाला है"।*

*🔴 फकीर सोचने लगा -"मैं तो केवल भेस से फकीर हूं सच्चा फकीर तो जाफ़र तू ही है।"*

*🔵 दो वर्ष बाद फकीर फिर यात्रा पर निकला और जाफ़र से मिला तो देख कर हैरान रह गया कि जाफ़र तो अब जमींदारो का जमींदार बन गया है। मालूम हुआ कि हमदाद जिसके वहां जाफ़र नौकरी करता था वह संतान विहीन था मरते समय अपनी सारी जायदाद जाफ़र को दे गया।*

*🔴 फकीर ने जाफ़र से कहा - "अच्छा हुआ वो जमाना गुजर गया। अल्लाह करे अब तू ऐसा ही बना रहे।"*

*🔵 यह सुनकर जाफ़र फिर हंस पड़ा  और कहने लगा - "फकीर!  अभी भी तेरी नादानी बनी हुई है"।*

*🔴 फकीर ने पूछा क्या यह भी नही रहने वाला है? जाफ़र ने उत्तर दिया -"या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा। कुछ भी रहने वाला नहीं है। और अगर शाश्वत कुछ है तो वह है परमात्मा और इसका अंश आत्मा। "फकीर चला गया ।*

*🔵 डेढ साल बाद लौटता है तो देखता है कि जाफ़र का महल तो है किन्तु कबूतर उसमे गुटरगू कर रहे हैं। जाफ़र कब्रिस्तान में सो रहा है। बेटियां अपने-अपने घर चली गई है।बूढी पत्नी कोने मे पड़ी है ।*

*"कह रहा है आसमां यह समां कुछ भी नहीं।*
*रो रही है शबनमे नौरंगे जहाँ कुछ भी नहीं।*
*जिनके महलों मे हजारो रंग के जलते थे फानूस।*
*झाड़ उनके कब्र पर बाकी निशां कुछ भी नहीं।"*

*🔵 फकीर सोचता है -" अरे इन्सान ! तू किस बात का  अभिमान करता है? क्यों इतराता है? यहां कुछ भी टिकने वाला नहीं है दुख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता।*

*🔴 तू सोचता है - "पड़ोसी मुसीबत मे है और मैं मौज में हूं। लेकिन सुन न मौज रहेगी और न ही मुसीबत। सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा।*

*"सच्चे इन्सान हैं वे जो हर हाल मे खुश रहते हैं।*
*मिल गया माल तो उस माल मे खुश रहते हैं।*
*हो गये बेहाल तो उस हाल मे खुश रहते हैं।"*

*🔵 धन्य है जाफ़र तेरा सत्संग  और धन्य हैं तुम्हारे सद्गुरु। मैं तो झूठा फकीर हूं। असली फकीर तो तेरी जिन्दगी है।*

*🔴 अब मैं तेरी कब्र देखना चाहता हूं। कुछ फूल चढा कर दुआ तो मांग लूं।*

*🔵 फकीर कब्र पर जाता है तो देखता है कि जाफ़र ने अपनी कब्र पर लिखवा रखा है-*

*🌹 "आखिर यह भी तो नहीं रहेगा"*

*JAHID*

Wednesday, October 4, 2017

कितना प्यारा SMS है सबको शेयर करें*

*कितना प्यारा SMS है सबको शेयर करें*

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*अल्लाह का वादा है 'जो तेरे* *नसीब में है वो तुझे ज़रूर मिलेगा,* *चाहे वो दो पहाड़ो के बीच क्यों न हो...* *और जो तेरे नसीब में नहीं वो* *हरगिज़ नहीं मिलेगा, चाहे वो तेरे दोनों होठों के दरमियान क्यों ना हो* *बेशक अल्लाह बेनियाज़ और बड़ी रहमत वाला है*
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*हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ رضي الله عنه. फरमाते है - किसी को दुःख देने वाला कभी खुश नहीं रहे सकता*
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*हज़रत उमर फारूक رضي الله عنه फरमाते है* *किसी की बे -बसी पे मत हँसो कल ये वक़्त तुम पर भी आसकता है।*
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*हज़रत उस्मान गनी رضي الله عنه. फरमाते है*
*किसी की आँख तुम्हारी वजह से नम न हो*
*क्योंकी तुम्हे उस के हर आंसू का क़र्ज़ चुकाना होगा*
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*हज़रत अली رضي الله عنه. फरमाते है -* *मज़लूम और नमाज़ी की आह से डरो,* *क्योंकि आह किसी की भी हो* *अर्श को चीर कर اللّه के पास जाती है*
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*हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ رضي الله عنه. फरमाते है*
*उस दिन पे आंसू बहाओ जो तुम ने नेकी के बिना गुज़ारा हो*
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*हज़रत उमर फारूक رضي الله عنه.* *फरमाते है - ज़ालिमों को माफ़ करना मज़लूमों पे ज़ुल्म है*
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*हज़रत उस्मान गनी رضي الله عنه. फरमाते है- जुबां दरुस्त हो जाये तो*
*दिल भी दरुस्त हो जाता है*
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*हज़रत अली رضي الله عنه. फरमाते है-* *जहा तक हो सके लालच से* *बचो,लालच में ज़िल्लत ही ज़िल्लत है*
*दुसरो को इस तरह माफ़ करो जिस तरह الله तुम्हे माफ़ करता है*
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Sunday, October 1, 2017

कर्बला

जब इमाम हुसैन हज करने के लिए मदीना से मक्का आए तो उन्हें मालूम हुआ कि यहां यज़ीद के लोग उनका कत्ल कर सकते हैं तो वो मक्का से बिना हज किए ही चले गए। क्योंकि वो अल्लाह के पाक घर में खून-खराबा नहीं चाहते थे।  वो मक्का से इराक के शहर कूफा पहुंचे।  उन्होंने कूफे के लोगों से मदद मांगी।  यज़ीद के सैनिक इमाम हुसैन की तलाश में कूफा भी पहुंच गए।  इमाम हुसैन ने अपने पैसों से कर्बला में कुछ जमीन खरीदी और वहां अपने तंबू गाड़ दिए और अपने परिवार के 72 सदस्यों के साथ इन तंबुओं में ठहर गए।  यज़ीद का हजारों का लश्कर भी कर्बला के मैदान में पहुंच गया। प्राचीन परंपराओं के अनुसार कर्बला का अर्थ है ईश्वर की पवित्र भूमि। कहते हैं ये बस्ती कई बार उजड़ी और कई बार आबाद हुई।  जब यज़ीद की सेना कर्बला पहुंची तो इमाम हुसैन को मालूम हुआ कि फौजी प्यासे हैं तो उन्होंने फौज को पानी पिलवाया।  इमाम हुसैन का कहना था कि हमारी लड़ाई खिलाफत के पद की नही बल्कि नाना (हज़रत मुहम्मद) के दीन को बचाने की है. कुछ इतिहासकारों का मत है यज़ीद ने अपने कमांडर उमरे साद को आदेश दिया था कि वो इमाम हुसैन और उनके परिवार को शाम (सीरिया) ले कर आए और वो यहां उनसे बैत करने को कहेगा।  लेकिन इसी दौरान शिम्र, इब्ने जियाद का खत लेकर पहुंचता है जिसमे लिखा था कि तुम इमाम हुसैन को कत्ल कर दो नहीं तो शिम्र को सेनापति बना दो। बहरहाल हुकूमत हो या खिलाफत हमेशा षडयंत्र करने वाले सक्रिय रहते हैं। इसी कर्बला के मैदान में जहां इमाम हुसैन ने अपने विरोधी की सेना को पानी पिलवाया।  वहीं उनके विरोधियों ने फुरात नदी से निकली नहर पर कब्जा कर लिया और इमाम हुसैन के परिवार का पानी बंद कर दिया।  इमाम हुसैन जानते थे कि हजारों फौजियों के मुकाबले में उनके 72 साथी शहीद हो जाएंगे।  वो चाहते तो खुद समेत सबको बचा सकते थे लेकिन उनकी नजर में दीनी उसूल ज्यादा अहम थे।इमाम हुसैन तीन दिन तक भूखे-प्यासे औरतों और बच्चों से सब्र करने को कहते रहे।  वो अपने छह महीने के बेटे को पानी पिलाने नहर पर ले गए।  उनको उम्मीद थी कि इस बच्चे को तो पानी मिल ही जाएगा। लेकिन जालिम फौजियों ने उस बच्चे को भी नही बख्शा और एक तीन कीलों वाला तीर उसके गले मे दे मारा जो आर-पार होकर इमाम हुसैन के बाजू में जा धंसा।  इमाम हुसैन के सामने उनके छह महीने के बेटे को कत्ल कर दिया गया लेकिन उन्होंने अपना इरादा न बदला। नौ मोहर्रम की रात को इमाम हुसैन अपने परिवार के लोगों के साथ रात भर दुआ करते रहे। वो अल्लाह से दुआ करते रहे कि अल्लाह उनकी कुर्बानी को कबूल कर ले और दीन व शरीयत को बचा ले। अगले दिन 10 मोहर्रम 61 हिजरी यानी 10 अक्टूबर, 680 ई. को कर्बला के मैदान में एक अजीब जंग हुई जिसमें हजारों प्रशिक्षित सैनिकों का मुकाबला छोटे-छोटे बच्चों और और औरतों समेत 72 भूखे-प्यासे लोगों से था।  नतीजा सबको मालूम था।  फिर भी लड़ना था। इंसानियत के लिए, सच्चाई के लिए, ईमान के लिए और शहादत के लिए। सभी मर्दों को कत्ल कर दिया गया।  बच्चों को मौत के घाट उतार दिया गया। औरतों को कैदी बना लिया गया।  इमाम हुसैन का कटा सिर नेजे (भाले) पर शहर की गलियों में घुमाया गया।  जालिमों ने अपने जुल्म की हर इंतेहा का प्रदर्शन किया लेकिन इमाम हुसैन से बैत न करा सके। इस तरह पैगंबर हज़रत मुहम्मद के नवासे और हज़रत अली के बेटे हज़रत इमाम हुसैन ने शहादत देकर अधर्मी और अत्याचारी के खिलाफ न सिर्फ अपनी बहादुरी का परिचय दिया बल्कि अपनी धर्मपरायणता का भी उदाहरण दिया।

(फर्स्टपोस्ट के लेख का महत्वपूर्ण अंश )